शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

कही कविता


बचपन से ही कविता को    
संकट के कठिन समय में 
संजीवनी बूटी बनते देखा। 
सुख के चंचल चपल दिनों में 
अहाते में चौकड़ी भरते देखा। 
घर भर के कोने - कोने में 
कविता को रचते - बसते देखा । 

माँ को सदा गृहस्थी के 
उलटे - सीधे फंदों में 
रहीम के दोहे बुनते देखा। 
दाल-भात, खीर और फुल्के 
रसखान के रस में पगते देखा। 

दादा को हर दिन सुबह-सबेरे
चौपाइयों से आचमन करते देखा। 
सूरदास की पदावली में 
ठाकुर दर्शन होते देखा। 

आँखों की नमी को नज़्म होते देखा। 
डूबती नब्ज़ थामने को ग़ज़ल होते देखा। 

कविता से बाँटी मन की पीड़ा। 
जो भी सीखा,कविता से ही सीखा। 

जीवन में लोग आए - गए ,
घटनाक्रम चलते रहे। 
पर कविता ने कभी भी 
साथ नहीं छोड़ा। 

कविता को घर आँगन की 
पावन तुलसी बनते देखा। 
देखा बनते 
सीता मैया की लक्ष्मण रेखा। 
और अर्जुन के लिए 
कृष्ण की गीता। 
कविता से ही सीखा 
जीने का सलीका। 

जब जब ठोकर लगी 
कविता ने ही संभाला। 
कविता जैसा ना पाया 
मनमीत कोई दूजा। 

माँ की गोद से जब उतरे 
कविता की ऊँगली पकड़ के ही 
हमने चलना सीखा। 

कविता से पाई जीवन ने गरिमा। 
कविता से पाई ह्रदय ने ऊष्मा। 

कविता की दृष्टि से ही 
समस्त सृष्टि को देखा। 
कविता में जी को पिरो कर ही 
कविता को जी कर देखा। 


शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2017

कविता जब सूझी





कविता जब सूझी, 
झट लिख दी । 

बौद्धिक श्रृंगार किया नहीं ।
शब्दों को संजोया नहीं । 
बेवजह मंथन किया नहीं ।
चाँद - सितारे जड़े नहीं ।   

नाप - तोल के देखा नहीं,
लाग - लपेट में पड़े नहीं । 
बस जैसी मन में उपजी, 
वैसी ही अर्पित कर दी। 

भावना सच्ची थी। 
बस इतनी गुणवत्ता थी। 
वर्ना बात ही तो थी ,
कहनी थी कह दी। 


बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

जीवन तो अपने विवेक से जीना है

भई, तुमसे किसने कहा था !
किसने कहा था कि किस्मत से उलझो ?
बल्कि समझाया था ..
वक्त की नज़ाकत समझो !
जो होता है होने दो !
होनी को कौन टाल पाया है ?
सब प्रभु की माया है !
कुछ भी ऊल-जलूल मत बको !
देखो अपनी हद में रहो ..
पर तुम्हें तो जीवन की
पोथी को बांचना है !
ज़िंदगी के हर इम्तिहान की
कॉपी को जांचना है !
भाग्य से लङ कर गढ़ जीतना है !
अपने जीवट का जौहर दिखाना है !
नट का नाच
सीखना और सिखाना है !
जमूरा नहीं.. उस्ताद बन कर
खेल दिखाना है !
खैर..देखो अब नतीजा क्या निकलता है !
तुम्हारा माद्दा पास या फ़ेल होता है !
कब तक टिकोगे बहाव के आगे ?
डूबते हैं जो बाज़ नहीं आते !

अच्छा जाओ.. जो मन में आये करो !
अभिमन्यु की तरह चक़व्यूह से लङो !
पराक़म करो !
जिसका जो होना है सो होना है !
पर तुम्हें भी जो करना है सो करना है !
जीवन की ये कैसी विडंबना है !

पर तुम्हारा ये कहना है -
विडंबनाओं को साथ लेकर जीना है.
विसंगतियों को स्वीकार करना है..
और फिर परास्त करना है.

तो ठीक है..
अब जैसा तुम कहो.

कोई चमत्कार हो ना हो, 
मन का माना हो ना हो,
जीवन तो अपने विवेक से जीना है.

जीवन तो अपने विवेक से जीना है.