बचपन बहुत पीछे छूट गया ।
बहुत बरस पहले कहीं ठिठका,
बस वहीँ अटक कर रह गया ।
जैसे खाते - खाते लगे ठसका . .
ऐसे कभी - कभी याद है आता,
और आँखें नम कर जाता ।
उस दिन कुछ ऐसा ही हुआ ।
बहुत दिनों में ननिहाल जाना हुआ ।
प्रणाम करते ही नानाजी ने कहा . .
अब महीना भर जाने नहीं दउंगा ।
बहुत अरसे बाद उनका ये कहना,
बालों में आती सफ़ेदी को अनदेखा कर गया ।
बचपन के किस्सों वाला पन्ना पलट गया . .
जिसमें था बचपन की कारस्तानियों का लेखा - जोखा . .
और नानाजी का बात - बात पर रोकना - टोकना ।
अब ना कोई जाने से रोकता ।
ना ही गलतियों पर टोकता ।
इसलिए जब नानाजी ने कहा . .
अब महीना भर जाने नहीं दउंगा . .
. . तो रोना भी आया ।
और बहुत अच्छा भी लगा ।