रविवार, 10 अगस्त 2014

इसी रास्ते पर




जब मन दुखी था . . 
इसी रास्ते पर,
चलते-चलते 
मैंने देखा - 
घूरे का ढेर ,
ऑटो स्टैंड के कोने पर 
बिल्डिंग भदरंग ,
टूटी कम्पाउंड वॉल ,
मारुति मैदान की सूखी घास ,
भाले सी चुभती धूप ,
कार की छत पर 
चिड़िया की बीट ,
बेमानी भीड़। 

जब मन प्रसन्न था  . . 
इसी रास्ते पर 
चलते-चलते 
मैंने देखा -
फूलों से लदा सोनमोहर। 
सोनमोहर के नीचे, 
फूलों की चादर से ढकी 
चाय की टपरी ,
लाइन से खड़ी 
कारों की छत पर 
इन्ही फूलों की मेंहदी। 
वटवृक्ष की घनी छाँव। 
रास्ते के अगले छोर पर 
बहुत पुराना राम मंदिर। 
मंदिर की घंटियों के 
सुरीले स्वर। 
स्कूल से आता बच्चों का शोर। 
चमचमाती दुकानें ,
घरों से झाँकते दिलचस्प  चेहरे, 
कर्मठ इंसानों के आते-जाते रेले, 
नुक्कड़ पर चाट के खोमचे, 
साँझ-सवेरे जैसे लगते हों मेले। 

देखा जाये तो आश्चर्यजनक सत्य यही है ,
वास्तव में, 
दुखी मन से 
प्रसन्न मन का 
पलड़ा भारी है।        
       



शनिवार, 5 जुलाई 2014

फूल बनाम मुन्ना



अपने हाथों से लगाये पौधे पर ,
खिलती हैं कलियाँ जब , 
जी खुश हो जाता है तब !
अपने नन्हे-मुन्ने की 
मासूम दूधिया हँसी 
देख कर भी ,
लगता है यही ।

यही कि देखते-देखते हर कली 
फूल बन कर थामेगी टहनी ।
इसी तरह आँखों के सामने मेरी
नौनिहाल मेरा 
होगा बड़ा ,
थाम कर हाथ मेरा ,
नन्हे-नन्हे कदम रखता 
चलेगा पैयाँ पैयाँ ।

नन्हा मुन्ना मेरा 
एक फूल प्यारा प्यारा ।
हौले-हौले खिला
फूल ही है मुन्ना हमारा ।



परवाह

हँसने का सबब कोई भी नहीं,
फिर भी हम हरदम हँसते हैं ।
दुनिया से हमको गिला नहीं,
हम अपनी फ़िक्र खुद करते हैं ।