शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

सपना



तुम मेरा सपना हो ।

तुम मेरा सपना हो ।
कोई भूली हुई ख्वाहिश नहीं,
सूखे फूलों का गुलदस्ता नहीं,
टूटी हुई स्ट्रीट लाइट नहीं,
दीवार पर टँगी तस्वीर नहीं,
जो देख-समझ कर भी 
अनदेखा कर दिया जाये ।       

तुम मेरा सपना हो ।
जागती आँखों का सपना हो ।
जो ठोस धरातल पर खड़ा है ।
जो उम्मीद के धागों से सिला है ।

तुम मेरा सपना हो ।
तुम वो खुली हवादार खिड़की हो, 
जिसके रास्ते 
धूप सीना ताने,
मेरे घर में आती है ।  
अपने बस्ते में 
अनगिनत सम्भावनाएं लाती है ।

तुम मेरा सपना हो ।
तुम वो सादा कागज़ हो 
जिस पर मैंने 
शब्दों के रंग भरे हैं,
मात्राओं से ख़याल बुने हैं ।
इस कागज़ को पढ़ो 
तो समझोगे, 
कैसे स्वप्न गढ़े जाते हैं ।

तुम मेरा सपना हो ।
तुम वो सीधी - सरल धुन हो 
जिस पर हर साज़ इठलाता है ।
जिसे हर मस्त - मौला गुनगुनाता है,
जिसकी लय से बंध कर 
मेरा सपना सुरीला हो जाता है ।

तुम मेरा सपना हो। 
तुम मेरी प्रार्थना हो। 
तुम्हें सच होते देखना, 
मेरा सपना है ।
ये सपना मेरा अपना है ।

तुम इसका मान रखना ।

      
     
      

बुधवार, 1 जनवरी 2014

दो अभय




माथे पर बिंदी नहीं,
कलाइयों में चूड़ियाँ नहीं,
कानों में बुँदे नहीं,
नाक में लौंग नहीं,
सूती बंगाली साड़ी नहीं,

अस्पताल के कपड़े ।
ड्रिप को देखते - देखते 
बूँद - बूँद 
सरकता समय  . . 
नहीं, नहीं, 
मुझे बर्दाश्त नहीं !
माँ का ये बेरंग फीका चेहरा,
चेहरे पर दर्द की लकीरें  . . 
आय वी से छिदे 
हाथ दुबले - पतले  . . 

परमपिता,
अब कुछ करो ऐसा,
मिट जाये चिंता की रेखा ।
जीवन की गरिमा 
बनी रहे ।
लौट आयें ज़िंदगी में 
ज़िंदादिली के रंग  . . 

इस निस्सार शून्य से 
अब तो दो अभय !


               

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

क्या हुआ ?




क्या हुआ ?

उसने पूछा ।

जाने क्या देखा  . . 
मेरा उदास चेहरा ?
या देखी परेशानी
मेरी पेशानी पर ?
या पढ़ ली बेचैनी 
बातों में मेरी ?  

मेरे लिए बड़ी बात है ये 
कि उसने पूछा तो सही ।
आप दिनों - दिन घुटते रहते हैं,
मन ही मन छटपटाते रहते हैं,
और किसी का ध्यान तक जाता नहीं ।

और फिर अचानक एक दिन 
कोई पूछ बैठता है -
क्या हुआ ?

जैसे चोट पर कोई रख दे, 
रुई का फाहा ।
जैसे दिल पर से उतर जाये, 
बोझ मनों का ।

केवल दो शब्द  . . 
क्या हुआ ?

और हम किसी बेहद अपने से भी
पूछना भूल जाते हैं,
या सोच ही नहीं पाते हैं,
कितना ज़रूरी है ये पूछना भी ।

कहने को छोटी - सी बात है,
पर किसी के लिए बहुत बड़ी राहत है ।

पूछ कर देखो तो सही ।
कभी न कभी तुम्हें भी,
ज़रुरत तो पड़ेगी ही ।

दौड़ते - भागते जीना,
कुछ देर रोक कर,
ज़रूरी है ठहर कर पूछना  . . 

क्या हुआ ?