बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

हारसिंगार




कभी तुमने लगाया था ,
हारसिंगार का पौधा ।

किताबों में पढ़ा था ,
हारसिंगार का खिलना 
कितना मन को छूता है ।
उपन्यासों में पढ़े थे ,                  

कितने भावुक प्रसंग 
हारसिंगार से जुड़े हुए ।

कविताओं के छंद  …  
गीत के बोलों में  …  
हारसिंगार झरते थे ।
बहुत भाता था तुम्हें , 
हारसिंगार का झरना ।     

अब तुम्हारा बसेरा 
दूर गाँव हो गया ।
पर तुम्हारे घर की 
पहरेदारी कर रहा ,
फूलों से सजा हुआ 
हारसिंगार का कोना ।


सारे मोहल्ले के 
लोग ले जाते हैं , 
अब भी 
फूल चुन के , 
हमेशा की तरह ।



सड़क से गुज़रने वाले 
पहचानते हैं ,
भीनी - भीनी 
सुगंध की बयार ।




हारसिंगार के फूलों से 
झोली भर लेते हैं ,
लोग तुम्हें 
हारसिंगार के बहाने 
याद बहुत करते हैं ।     




शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

फूल


 
 
सड़क के किनारे ,
फुटपाथ पर 
बैठे थे,
शायद एक ही परिवार के 
कुछ लोग । 
औरतें,आदमी, बच्चे  . . 
सब लगे हुए थे 
फूलों की माला गूंथने में । 
सधे हुए हाथ 
फुर्ती से चल रहे थे । 
चारों तरफ उनके 
फूलों के ढेर थे । 
लाल , सफ़ेद , पीले 
फूल खिले - खिले ,
एकदम ताज़े ,
और पत्ते हरे । 
इन्ही फूलों और लोगों के बीच 
एक शिशु सोया था 
दरी पर ,
दीन - दुनिया से बेख़बर 
गहरी नींद में । 
उसका भोला चेहरा 
लग रहा था ,
अनेक फूलों के बीच 
एक निश्छल मासूम फूल । 



शनिवार, 28 सितंबर 2013

जीवन उत्सव है



जीवन उत्सव है । 
पंछियों का कलरव है ।
जुगनुओं की जगमग है ।
नूपुरों की छन - छन है ।
चूड़ियों की खन - खन है ।   
पायल की छम - छम है ।
जीवन उत्सव है ।

जीवन उत्सव है ।
ढोलक की थाप है ।
अनचीन्हा राग है ।
मेंहदी की छाप है ।
हवन का ताप है ।
विदूषक का स्वांग है ।
जीवन उत्सव है ।

जीवन उत्सव है ।
पग की थिरकन है ।
ह्रदय की धड़कन है ।
गीत की सरगम है ।
स्वप्नों की करवट है ।
समय की सिलवट है ।
जीवन उत्सव है ।

जीवन उत्सव है ।
पूजा की शुभ वेला है ।
त्यौहारों का मेला  है ।  
पुरुषार्थ अलबेला है ।
आस्था की अनुपम लीला है ।
जिजीविषा की पाठशाला है ।
जीवन उत्सव है ।

जीवन उत्सव है ।
पंचतंत्र की कथा है ।
भावुक मन की व्यथा है ।
अनुभूति की यात्रा है ।
अंतर्मन की कविता है ।
कर्म और कर्त्तव्य की गीता है ।
जीवन उत्सव है ।