रविवार, 24 जुलाई 2011

अर्थात्



मन की बात
जब एक बार
काग़ज़ पर
उतार दी,
फिर वो बात
लिखने के साथ
पढने वाले की
भी हो गई..

सिर्फ़ अपनी
कहां रही ?





शनिवार, 9 जुलाई 2011

शायद



कौन जाने अब
किन हालात में
फिर मुलाक़ात हो ..

कोई बात हो ना हो,
मेरी दुआ हमेशा
तुम्हारे साथ हो.

तुम्हारी दुनिया
ख़ुदा की रहमत से
आबाद हो.

जिस रास्ते पर चलो
तुम्हारा हमखयाल
ज़रूर तुम्हारे साथ हो.

अकेलेपन का
कभी ना
एहसास हो.

...शायद कभी
फिर मुलाक़ात हो.



बुधवार, 1 जून 2011

तुकबंदी बनाम कविता



जो चाहा
और जो हुआ,
इन दोनों
सौतेले झमेलों में...
कितने भी हाथ-पाँव पटको
कितने भी पैंतरे बदल-बदल कर देखो
सोच-सोच कर सर दे मारो...

समझदारों !
जो चाहा
और जो हुआ
इन दोनों में तुक बैठेगी नहीं,
कितनी भी कर लो तुकबंदी !

हाँ ! अगर
जो हुआ उसे
सोच की कसौटी पर
कस कर
परखो
और कुछ कर दिखाओ
तो इंशा अल्लाह !
तुकबंदी भी होगी उम्दा,
और बनेगी ज़िंदगी कविता.