शनिवार, 9 जुलाई 2011
शायद
कौन जाने अब
किन हालात में
फिर मुलाक़ात हो ..
कोई बात हो ना हो,
मेरी दुआ हमेशा
तुम्हारे साथ हो.
तुम्हारी दुनिया
ख़ुदा की रहमत से
आबाद हो.
जिस रास्ते पर चलो
तुम्हारा हमखयाल
ज़रूर तुम्हारे साथ हो.
अकेलेपन का
कभी ना
एहसास हो.
...शायद कभी
फिर मुलाक़ात हो.
बुधवार, 1 जून 2011
तुकबंदी बनाम कविता
जो चाहा
और जो हुआ,
इन दोनों
सौतेले झमेलों में...
कितने भी हाथ-पाँव पटको
कितने भी पैंतरे बदल-बदल कर देखो
सोच-सोच कर सर दे मारो...
समझदारों !
जो चाहा
और जो हुआ
इन दोनों में तुक बैठेगी नहीं,
कितनी भी कर लो तुकबंदी !
हाँ ! अगर
जो हुआ उसे
सोच की कसौटी पर
कस कर
परखो
और कुछ कर दिखाओ
तो इंशा अल्लाह !
तुकबंदी भी होगी उम्दा,
और बनेगी ज़िंदगी कविता.
रविवार, 22 मई 2011
SILENCE
Silence is like
a placid lake.
You can clearly see
your deepest thoughts
in its
calm countenance.
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