सोमवार, 12 जुलाई 2010
दादी
दादी की यादें
दादी की बातें
मन से बंधी हैं
ताबीज़ की तरह.
दादी की बोली
दादी की ठिठोली
गाँठ से बंधी है
कमाई की तरह.
दादी की गोदी
दादी की थपकी
मन को समझाती है
लोरी की तरह.
दादी की झिड़की
दादी की उंगली
रास्ता दिखाती है
ध्रुव तारे की तरह.
nupuram@gmail.com
सोमवार, 5 जुलाई 2010
मुस्तकबिल
जिंदगी में
हमेशा
दो विकल्प होंगे
तुम्हारे सामने.
एक होगा
आसान,
जाना - पहचाना ..
सब कुछ वैसा ही होगा,
जैसा तुम चाहोगे.
पर शायद तुम समझ ही नहीं पाओगे
कि तुम आख़िर चाहते क्या हो ..
दूसरा विकल्प होगा
बिल्कुल मुश्किल,
अपरिचित,
अच्छी - बुरी संभावनाओं की
हाट लगाये बाट जोहता.
ना जाने जीवन की नैया
किस ठौर पहुंचाएगा ..
पर तय है इतना,
तुझे ख़ुद से वाक़िफ़ ज़रूर कराएगा.
तू ख़ुद को जान पायेगा,
प्यार कर पायेगा.
चुनो !
और अपना मुस्तकबिल
ख़ुद तय करो !
noopuram
जिंदगी में
हमेशा
दो विकल्प होंगे
तुम्हारे सामने.
एक होगा
आसान,
जाना - पहचाना ..
सब कुछ वैसा ही होगा,
जैसा तुम चाहोगे.
पर शायद तुम समझ ही नहीं पाओगे
कि तुम आख़िर चाहते क्या हो ..
दूसरा विकल्प होगा
बिल्कुल मुश्किल,
अपरिचित,
अच्छी - बुरी संभावनाओं की
हाट लगाये बाट जोहता.
ना जाने जीवन की नैया
किस ठौर पहुंचाएगा ..
पर तय है इतना,
तुझे ख़ुद से वाक़िफ़ ज़रूर कराएगा.
तू ख़ुद को जान पायेगा,
प्यार कर पायेगा.
चुनो !
और अपना मुस्तकबिल
ख़ुद तय करो !
noopuram
रविवार, 4 जुलाई 2010
असंभव
कैसे ?
पत्थरों के बीच
कोपल फूटती है ?
दीवार की दरार के
बीचों - बीच
कोमल पौधा
पनपता है ?
हवा की थपकी से
हौले-हौले हिलते हुए
बोध कराता है,
असंभव कुछ भी नहीं.
noopuram
कैसे ?
पत्थरों के बीच
कोपल फूटती है ?
दीवार की दरार के
बीचों - बीच
कोमल पौधा
पनपता है ?
हवा की थपकी से
हौले-हौले हिलते हुए
बोध कराता है,
असंभव कुछ भी नहीं.
noopuram
सदस्यता लें
संदेश (Atom)