रंगरेज़
तुम बातों के रंगरेज़ हो .
जिस रंग में चाहो ,
रंग दो ,
अपनी बातों को .
रंग फीका ना हो .
चोखा हो ,
चटकीला हो ,
पर पक्का हो !
जब चढ़े तो
मन में तरंग हो !
पग चंग, मृदंग, पतंग हो !
जब रचे तो
मेहंदी, हल्दी ..
रोली, ठिठोली ..
टेसू, गुलमोहर ..
फागुन की फुहार ..
इन्द्रधनुष हो !
तुम बातों के रंगरेज़ हो .
ऐसे रंग में रंग दो
अपनी बातों को ,
मानो हर सोच
एक छंद हो .
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010
सोमवार, 22 फ़रवरी 2010
बशर्ते प्यार ...
क्या कहा ?
बुढ़ापे में प्यार !
क्यों भैय्या ?
प्यार का
उम्र से क्या सरोकार !
कुछ रिश्ते
दिन चढ़ते ,
बनते हैं .
कुछ नाते
दिन ढलते
पार्क की बेंच पर बैठे
सूर्यास्त देखते देखते
जुड़ते हैं .
हाँ ये सच है ,
हर उम्र का
अंदाज़ जुदा होता है ;
पर फ़लसफ़ा वही
रहता है .
यानी
कोई फ़लसफ़ा नहीं
होता है .
तट से बंध कर नहीं,
नदी का पानी
ख़ुद-ब-ख़ुद
रवां होता है .
होता है
पानी वही,
पर कहलाता है कभी
पहाड़ी झरना ..
और इसी पानी का
एक दिन
किनारों ने देखा
चुपचाप बहना .
दोनों को देखना
लगता है भला .
अहम है पानी का साफ़ होना,
फिर क्या नदी .. क्या झरना .
क्यों रहे सूना, मन का कोई कोना .
सहज है हर उम्र में, प्यार होना .
अभी
बस देर मत करो .
जो करना है -
कर डालो,
अभी .
बस देर मत करो .
जो कहना है -
कह डालो,
अभी .
अभी से अच्छा वक़्त
फिर नहीं आएगा .
जो देना है - समय
इस दम दे कर जायेगा .
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