समय के
हर समीकरण से
दीक्षा ली है ,
ये जाना कि
जीने का पर्याय
सीखना ही है ।
बुधवार, 8 जुलाई 2009
शनिवार, 20 जून 2009
सोमवार, 15 जून 2009
झरता रहा हारसिंगार
झरता रहा हारसिंगार
कहा तो कुछ भी नहीं ऐसा
आपने
जो बदल दे स्वाभाव समय का
हो ऐसा अद्भुत विन्यास शब्दों का ।
नहीं
ऐसा तो कुछ भी नहीं कहा ।
बस
देख कर अनदेखा नहीं किया,
बस देखा
और सहज ही
अभिवादन किया ।
फिर कहा
नाम भी तो नहीं था पता,
पहचानता कैसे कि
किसी का परिचय दहलीज़ पर
बाट जोहता खड़ा है ,
कोई बात साथ चल रही है
एक संवाद बुन रही है ।
बस इतना ही कहा
और हंस दिए धीमे से
सुबह की धूप सी हँसी ।
आसपास खिंच गई
लक्ष्मणरेखा
सरल और निश्छल दृष्टि की ।
अनायास ही
जाने क्या हुआ,
कई दिनों का इकट्ठा हुआ
दुःख
प्रतिकार
जो चोट सहते-सहते
पथरा गया था,
उस पत्थर से
सोता फूट पड़ा
आंखों से
गंगा-यमुना सा जल बह चला
सूर्य रश्मि की ऊष्मा ले
पावन हो गया ,
मन हल्का हो गया
फूल सा ,
हारसिंगार झरता रहा ।
कहा तो कुछ भी नहीं ऐसा
आपने
जो बदल दे स्वाभाव समय का
हो ऐसा अद्भुत विन्यास शब्दों का ।
नहीं
ऐसा तो कुछ भी नहीं कहा ।
बस
देख कर अनदेखा नहीं किया,
बस देखा
और सहज ही
अभिवादन किया ।
फिर कहा
नाम भी तो नहीं था पता,
पहचानता कैसे कि
किसी का परिचय दहलीज़ पर
बाट जोहता खड़ा है ,
कोई बात साथ चल रही है
एक संवाद बुन रही है ।
बस इतना ही कहा
और हंस दिए धीमे से
सुबह की धूप सी हँसी ।
आसपास खिंच गई
लक्ष्मणरेखा
सरल और निश्छल दृष्टि की ।
अनायास ही
जाने क्या हुआ,
कई दिनों का इकट्ठा हुआ
दुःख
प्रतिकार
जो चोट सहते-सहते
पथरा गया था,
उस पत्थर से
सोता फूट पड़ा
आंखों से
गंगा-यमुना सा जल बह चला
सूर्य रश्मि की ऊष्मा ले
पावन हो गया ,
मन हल्का हो गया
फूल सा ,
हारसिंगार झरता रहा ।
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