गुरुवार, 11 जून 2009
कहने भर से
कोई भी बात
सिर्फ़
कहने भर से
पूरी नहीं हो जाती ।
बात जब दिखलाती है,
अपना असर -
तब जानी जाती है ।
मसलन,
एक बात पॉपकॉर्न सी उछलती है,
गेंद की तरह लपक ली जाती है ।
एक बात जलेबी सी पहेली है,
फिर भी बड़ी रसीली है !
एक बात तवे पर पानी की बूँद है,
फफोले की तरह फक रह जाती है ।
एक बात मानो कोई झांकी है,
दुनिया के तेवर दिखलाती है ।
एक बात धीमी आंच पर पकती है,
और भीतर तक सेंक जाती है ।
एक बात जाड़े की धूप सी मनभाती है,
मन का हर कोना गुनगुना कर जाती है ।
एक बात चौड़े पाट की नदी है,
चुपचाप आकाश को ताके जाती है ।
एक बात चूड़ियों सी खनकती है,
और मन की बात कह जाती है ।
एक बात बादलों सी मन पर छा जाती है,
कलेजे में बरसों घुमड़ती रहती है ।
एक बात दीवार की कील है,
जिस पर मनचाही तस्वीर टांगी जाती है ।
एक बात पेचीदा कलाकृति है,
ऊँचे दामों पर बेची जाती है ।
एक बात फूलों की माला सी है,
उपेक्षित भावनाओं को सम्मानित कर जाती है ।
एक बात अनकही बातों की बही है,
जनम भर का दुःख दे जाती है ।
एक बात गुम चोट सी है,
जो रह रह कर टीस उठाती है ।
एक बात चूल्हे की बुझती आग सी है,
चार बूँद छिड़कते ही ठंडी पड़ जाती है ।
एक बात मृगतृष्णा है,
असावधान को छल जाती है ।
एक बात इतनी सुहाती है,
कि सिरहाने रख कर सोई जाती है ।
एक बात महाभारत होती है,
जो हर यक्ष प्रश्न का उत्तर देती है ।
एक बात रामचरित मानस होती है,
जो जीवन का आधार होती है ।
एक बात गीता होती है,
जो मार्गदर्शन करती है ।
एक बात भागवत कथा होती है,
जो जीवन का सार होती है ।
एक बात मस्तक का तिलक होती है,
जो स्वाभिमान सी सीधी खिंची होती है ।
जिस बात से अपना जीवन सध जाए,
वही बात, बड़ी बात - करामात होती है ।
कोई भी बात
सिर्फ़
कहने भर से
पूरी नहीं हो जाती ।
बात जब दिखलाती है,
अपना असर -
तब जानी जाती है ।
मसलन,
एक बात पॉपकॉर्न सी उछलती है,
गेंद की तरह लपक ली जाती है ।
एक बात जलेबी सी पहेली है,
फिर भी बड़ी रसीली है !
एक बात तवे पर पानी की बूँद है,
फफोले की तरह फक रह जाती है ।
एक बात मानो कोई झांकी है,
दुनिया के तेवर दिखलाती है ।
एक बात धीमी आंच पर पकती है,
और भीतर तक सेंक जाती है ।
एक बात जाड़े की धूप सी मनभाती है,
मन का हर कोना गुनगुना कर जाती है ।
एक बात चौड़े पाट की नदी है,
चुपचाप आकाश को ताके जाती है ।
एक बात चूड़ियों सी खनकती है,
और मन की बात कह जाती है ।
एक बात बादलों सी मन पर छा जाती है,
कलेजे में बरसों घुमड़ती रहती है ।
एक बात दीवार की कील है,
जिस पर मनचाही तस्वीर टांगी जाती है ।
एक बात पेचीदा कलाकृति है,
ऊँचे दामों पर बेची जाती है ।
एक बात फूलों की माला सी है,
उपेक्षित भावनाओं को सम्मानित कर जाती है ।
एक बात अनकही बातों की बही है,
जनम भर का दुःख दे जाती है ।
एक बात गुम चोट सी है,
जो रह रह कर टीस उठाती है ।
एक बात चूल्हे की बुझती आग सी है,
चार बूँद छिड़कते ही ठंडी पड़ जाती है ।
एक बात मृगतृष्णा है,
असावधान को छल जाती है ।
एक बात इतनी सुहाती है,
कि सिरहाने रख कर सोई जाती है ।
एक बात महाभारत होती है,
जो हर यक्ष प्रश्न का उत्तर देती है ।
एक बात रामचरित मानस होती है,
जो जीवन का आधार होती है ।
एक बात गीता होती है,
जो मार्गदर्शन करती है ।
एक बात भागवत कथा होती है,
जो जीवन का सार होती है ।
एक बात मस्तक का तिलक होती है,
जो स्वाभिमान सी सीधी खिंची होती है ।
जिस बात से अपना जीवन सध जाए,
वही बात, बड़ी बात - करामात होती है ।
मंगलवार, 5 मई 2009
पंटू के सपने
पंटू के सपने हैं
कोई बेवक़्त का राग नहीं -
जो चुप जाए ,
कोई तमाशा या खेल नहीं -
जो पलक झपकते ख़त्म हो जाए ।
आप अगर समझ नहीं सकते
तो कम से कम इस मुआमले में
दखलंदाज़ी न कीजिये !
ज़रा परे हट कर खीजिए !
आप होंगे बहुत बड़े होशियार और समझदार !
पर बात दूसरों की भी सुना करो मेरे यार !
ज़िन्दगी भले गाजर-मूली के हिसाब में बीते,
किसी के भी सपने मामूली नहीं होते !
किसी के भी सपने छोटे या बड़े नहीं होते !
आठ आना हों या बारह आना,
या हों बराबर चवन्नी !
चवन्नी भी कम नहीं होती उस्ताद !
चवन्नी की नींव पर
नोटों की इमारत खड़ी कर सकते हैं आप !
जी जनाब !
जी जनाब !
ख्वाब होते हैं ख्वाब !
आपके बड़प्पन के नहीं मोहताज !
किसी ख्वाब के दम पर एक उम्र कट जाती है ,
सपनों के बल पर दुनिया जीती जाती है ।
तो पंटू के सपने बड़े छोटे - छोटे,
जैसे बूंदों में झिलमिल इन्द्रधनुष झलके ।
घर जैसा घर हो ,
गृहस्थी में चैन हो ,
ना अपनों में बैर हो ।
चार पैसे हमेशा जेब में रहें ,
माँ-बाप को कोई कमी ना खले ,
बच्चों की एक-आध ख्वाहिश पूरी करें,
और थोड़ा बहन-भाई पर भी खरचें ।
जिसके संग फेरे हों सात फेरे,
उससे मन का भी जोग मिले ।
जो अपना हो काम-धंधा
तो बहुत ही अच्छा ,
और दस आदमियों के हाथ में
उपजे पैसा ।
वर्ना जो भी हो काम ,
हमें आता हो अच्छा ,
ना रह जाऊँ कच्चा ।
अपने-बेगाने
मेरे काम को सराहें ,
मेहनत की रोटी
सब मिल कर खाएं ।
कहने-सुनने को दोस्त दो-चार हों,
वक्त पर काम आने वाले पड़ोसी हों ।
चिलचिलाती धूप में नीम की छांव मिले ,
प्याऊ पर पीने का पानी साफ़ मिले ।
अच्छे-बुरे समय में सुमति रहे ।
हिम्मत हर हाल में बनी रहे ।
कभी-कभी सपने
मानो दुआ होते हैं ।
मन की उम्मीद का
आईना होते हैं ।
हज़ार देखो तो एक-दो सच होते हैं ।
सपने तो कितने भी हों कम होते हैं ।
सपनों का एक बुनियादी उसूल है -
तहे-दिल से जो चाहो
वो किस्मत को कुबूल है ।
भाग्य और पुरुषार्थ के बीच का संवाद है ,
पंटू का मन सपनों की किताब है ।
कोई बेवक़्त का राग नहीं -
जो चुप जाए ,
कोई तमाशा या खेल नहीं -
जो पलक झपकते ख़त्म हो जाए ।
आप अगर समझ नहीं सकते
तो कम से कम इस मुआमले में
दखलंदाज़ी न कीजिये !
ज़रा परे हट कर खीजिए !
आप होंगे बहुत बड़े होशियार और समझदार !
पर बात दूसरों की भी सुना करो मेरे यार !
ज़िन्दगी भले गाजर-मूली के हिसाब में बीते,
किसी के भी सपने मामूली नहीं होते !
किसी के भी सपने छोटे या बड़े नहीं होते !
आठ आना हों या बारह आना,
या हों बराबर चवन्नी !
चवन्नी भी कम नहीं होती उस्ताद !
चवन्नी की नींव पर
नोटों की इमारत खड़ी कर सकते हैं आप !
जी जनाब !
जी जनाब !
ख्वाब होते हैं ख्वाब !
आपके बड़प्पन के नहीं मोहताज !
किसी ख्वाब के दम पर एक उम्र कट जाती है ,
सपनों के बल पर दुनिया जीती जाती है ।
तो पंटू के सपने बड़े छोटे - छोटे,
जैसे बूंदों में झिलमिल इन्द्रधनुष झलके ।
घर जैसा घर हो ,
गृहस्थी में चैन हो ,
ना अपनों में बैर हो ।
चार पैसे हमेशा जेब में रहें ,
माँ-बाप को कोई कमी ना खले ,
बच्चों की एक-आध ख्वाहिश पूरी करें,
और थोड़ा बहन-भाई पर भी खरचें ।
जिसके संग फेरे हों सात फेरे,
उससे मन का भी जोग मिले ।
जो अपना हो काम-धंधा
तो बहुत ही अच्छा ,
और दस आदमियों के हाथ में
उपजे पैसा ।
वर्ना जो भी हो काम ,
हमें आता हो अच्छा ,
ना रह जाऊँ कच्चा ।
अपने-बेगाने
मेरे काम को सराहें ,
मेहनत की रोटी
सब मिल कर खाएं ।
कहने-सुनने को दोस्त दो-चार हों,
वक्त पर काम आने वाले पड़ोसी हों ।
चिलचिलाती धूप में नीम की छांव मिले ,
प्याऊ पर पीने का पानी साफ़ मिले ।
अच्छे-बुरे समय में सुमति रहे ।
हिम्मत हर हाल में बनी रहे ।
कभी-कभी सपने
मानो दुआ होते हैं ।
मन की उम्मीद का
आईना होते हैं ।
हज़ार देखो तो एक-दो सच होते हैं ।
सपने तो कितने भी हों कम होते हैं ।
सपनों का एक बुनियादी उसूल है -
तहे-दिल से जो चाहो
वो किस्मत को कुबूल है ।
भाग्य और पुरुषार्थ के बीच का संवाद है ,
पंटू का मन सपनों की किताब है ।
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