रविवार, 21 मई 2023

इस दिन की कमाई

सुबह उठे जब
अपने हाथों को देखा
प्रभाते कर दर्शनम
दिन शुरू हुआ
कमाई करने निकला 
खाली हाथ जो था ।

वक्त से दुआ-सलाम हुआ ।
दिल को किसी का पैगाम मिला ।
किसी की नादानी को माफ़ किया ।
किसी का दामन थाम लिया ।
किसी मुस्कुराहट का जवाब दिया ।
कुछ देर ठहर किसी दर पर बातें कीं ।
किसी दरख़्त की छाँव महसूस की ।
रास्ते पार किए बगैर जा पहुँचे कहीं ।
घुमाती ही रहती है जीवन की सप्तपदी ।

दो पैसे कमाए ।
सांझ संग रंगों की चूनर बुनी ।
बाज़ारों की रौनक़ देखी ।
खेलते बच्चों की किलकारियां सुनीं ।
और मंदिर की घंटियों की रागिनी ।
क्यारी में बो दी धूप की संजीवनी ।
सुराही में भर ली पूनम की चाँदनी ।
मिलने वालों से दो बातें की खुशी-खुशी ।
दुख बाँटे ,गले मिले,दिल की बात ज़ाहिर की ।
नेकदिल बंदों की सलामती की दुआ मांगी ।
थक के चकनाचूर हुए पाँव फैलाये
मगर उतने ही जितनी चादर थी ।
तानते ही चादर नींद ने लोरी सुनाई ।

नफ़े-नुकसान की बात यदि रहने ही दें ।
इतने में ही हो जाती है भरपाई ।
दाल भात बाटी, सर पर हो छत अपनी ।
बिछौने पर लेटते ही नींद आ जाए ।
दुख-सुख के आभूषण, बात करने को अपने ।
मन में हो प्रार्थना और दिल में भलाई ।
बहुत है अपने लिए इस दिन की कमाई ।


शुक्रवार, 19 मई 2023

किसने मन का फूल खिलाया

अब जाकर समझ में आया
किस बात ने फूल खिलाया
बाट जोहती थीं जो कलियाँ 
डालों पर अब तक गुमसुम 
आज हठात उन्हें हुआ क्या
किसने उन पर जादू चलाया
जाने क्या उनके मन में आया 
झोंका पवन का संदेसा लाया
कलियों का भी मन हरषाया
प्यार प्रार्थना साथ किसी का
बन गए ज़िदगी का सरमाया
बूँद बूँद चिंतन मिट्टी ने सोखा
भाव भूमि पर फूल खिलाया


सोमवार, 15 मई 2023

संदर्भ


संदर्भ बदलते ही
अर्थ बदल जाते हैं ।
बात करो मत
शाश्वत सत्य की !
एक ही क्षण में 
मूल्य बदल जाते हैं ।
मूल्य होते हैं लचीले ..
किसी भी सांचे में 
ढाल दिये जाते हैं ।
शुद्धता मापने के 
पैमाने बदल जाते हैं ।
हांफती ज़िन्दगी की 
जद्दोजहद में 
हर चीज़ देखने के 
ढंग बदल जाते हैं ।
साथ चलते-चलते 
लोग बदल जाते हैं ।
नाम उसूलों के  
वही रहते हैं ।
काम और दाम 
बदल जाते हैं ।
आदमी की 
अहमियत ही क्या है ?
पलक झपकते ही
संज्ञा से 
सर्वनाम हो जाते हैं ।


गुरुवार, 4 मई 2023

वरदान में वरदहस्त

न आकाश में न धरती पर
न अस्त्र से न शस्त्र से 
न दिन में न रात में 
न घर में न घर से बाहर
न मनुष्य,न पशु,
न देव, न दैत्य
कोई नहीं मार सकता
आज भी हिरण्यकशिपु को,
जो हमारे भीतर घात लगाकर 
बैठा रहता है अकङ कर ।
इस निरंकुश अहंकार पर
ठप्पा जो लगा है, अमर तपस्वी का ।
पर आपकी कृपा से भगवन
प्रहलाद भी जनम लेता है
उसी सोच के धरातल पर ।
भक्त फ्रहलाद न दीन हैं, न असफल ।
विनम्र सत्कर्म का धारे कवच ।
मेरी चेतना में सर्वदा रहे उपस्थित 
भक्त प्रह्लाद की भक्ति अविचल ।
जब जब अनर्थ करने के लिए 
उद्यम करे.. हिरण्यकशिपु ललकारे,
तब तुम जो सर्वत्र विद्यमान हो,
जङ खंब से प्रगट होना !
चेतना स्वरूप ..
नरसिंह रूप धर कर ।

न आकाश में न धरती पर
न अस्त्र से न शस्त्र से
न दिन में न रात में 
न घर में न घर से बाहर
न मनुष्य,न पशु,
न देव, न दैत्य,
मेरी चेतना से प्रस्फुटित होकर
नरसिंह भगवान ! लीजिए अवतार !
विराजिये चौखट पर मन की
मिटा दीजिए द्वंद, कायरता,
भ्रमजाल, अभिमान, भय का, 
अदम्य तृष्णा का नख छेदन कर
रक्षा कीजिए अभय दीजिए 
सदाचार में दृढ़ अपने अनन्य भक्त 
निर्मल मति प्रहलाद को दुलार कर
अंक में भर लीजिए, और दीजिए 
अक्षय वरदान में वरदहस्त ।





सोमवार, 24 अप्रैल 2023

चंदन वंदन



मंगल सुवासित प्रभात ।
पुलकित हुआ पात पात ।
फूलों का सुगंधित हास ।
पंछियों का सुरीला आलाप ।
समय जल सम प्रवाहित 
लहर लहर पल पल निरंतर ।
चारों दिशाएं उठीं जाग 
सस्वर करतीं अभिवादन ।
योग, कर्म, कौशल का बल
अथक श्रम से निरंतर सिंचन ,
आकाश में दैदीप्यमान उदयन
जगत में रोपता धूप उदार मन ।
मंगलमय स्वर्णिम हो जन-जीवन
प्रणति निवेदन अक्षय हो चंदन वंदन ।


मंगलवार, 21 मार्च 2023

एक थी गौरैया . .




सुना आज दिन है गौरैया का 

उसका दाना-पानी आबोदाना 

और इंसान से उसका रिश्ता 

जो टूट कर भी कभी नहीं टूटा ..


ये बस एक इत्तफ़ाक ही है क्या  ?

जो आज ही है दिन कथा सुनाने का 

किस्से-कहानी, दास्तानगोई का 

सुनो कहानी एक थी चिड़िया ..


एक थी चिड़िया कैसे सच हो गया ?

अंदाज़ था ये तो आग़ाज़ करने का !

क्योंकि चुना आदमी ने बंद दरवाज़ा 

कंक्रीट से चिन दिया खुला बगीचा ..


कटे दरख़्त, खड़ी हुई अट्टालिका 

सुविधाएं अंधाधुंध, अपार जुटाता गया 

ख़ुद चारदीवारी में सिमटता गया 

बाग़-बगीचे, फूल,पंछी सब भूल गया ..


जब तापमान बढ़ता-चढ़ता ही गया 

आसमान हो गया मैला,धुंआ-धुआं 

नदियों का पानी भी दूषित हो गया 

तब भी ना जागा विवेक मनुष्य का ..


झक मार मनाता अब दिन खुशी का !

कहानियों में खोजता पता सुकून का !

बिना दाम की दौलत में जो सुख था ..

सारे जहां की दौलत के बस का ना था !


मुट्ठी भर दाना मिट्टी का बर्तन पानी का 

घर के किसी कोने में घोंसला तिनके का 

घर भर देगा झट गौरैया का चहचहाना  

मुट्ठी भर ख़ुशी, मुट्ठी जितना दिल अपना !


मुट्ठी में समा जाए इतनी सी बस गौरैया  !

चुटकी में बदल देगी अंत इस कहानी का ! 

ख़ुशी से दाना-दाना चुगना सुख-दुःख का !

यही तो है जीवन के उत्सव की कविता ! 


Sparrow