बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

झिलमिलाती बूँद











जिन पौधों को
तुम सींचती हो
श्रम जल से,
उनके पत्तों पर
ठहरी एक बूँद,
अपनी आंखों में
रख ली है मैंने,
बिना तुम्हें बताए,
ये सोच के
कि एक दिन
जब वो बूँद
अश्रु जल से
सींचते-सींचते
मोती बन जाएगी
और तुम्हें
सौंपी जाएगी,
तो झट से
तुम्हारी आंखों की
चमक बन जाएगी ।
अनकहे भावों की
खुशी झिलमिलायेगी ।



बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

राग





सघन वृक्ष की 
ममतामयी छांव में,
कुहू कुहू
कोयल कूक रही है ।
और मन ही मन
सोच रही है,
जीवन पथ जाने
कहाँ-कहाँ ले जाएगा ।


इस पथ पर चलने वाला
क्लांत पथिक क्या,
मेरी तान सुन कर
कुछ पल चैन पाएगा ?
यदि ऐसा हो पाएगा,
उसकी थकान दूर कर
मेरा मन सुख पाएगा ।


गान मेरा
सार्थक हो जाएगा ।
जब मेरा गायन
जन-जन के मन में
सोया राग जगाएगा ।






शनिवार, 22 सितंबर 2018

पिता नहीं होते विदा










                              











बप्पा यदि जाएं ही ना
हमें छोड़ के
कभी घर से
तो अच्छा हो ना ?
सदैव मंगल हो ना ?

पर विसर्जन में
बप्पा जाते हैं क्या ?
ऐसा हमें लगता है ना ?

पर पिता
बच्चों से दूर कभी नहीं जाते ।

विसर्जन होता है उसका
जो जीवन में नहीं खपता ।
दुख ग्लानि आक्रोश कुंठा का
जो भी निभ नहीं सकता ।

जो अपना हो, कभी नही जाता,
बप्पा विराजते हैं मन में सदा ।



हम बस गर्व करते रहेंगे ?

हम गर्व तो नहीं करते रह सकते।
उसने कहा।

छर्रे की तरह
उसका ये कहना
चीर गया।

उसने कहा
क्योंकि उसका कोई अपना
शहीद हुआ था।
वो ख़बर पढ़ कर 
नहीं बोला।

ज़माने ने पढ़ा
आगे बढ़ गया ।
शहीद का कुनबा
ठगा-सा रह गया।
इसलिए बोला।

अब क्या होगा ?
दो जून रोटी का
जुगाड़ कैसे होगा ?
पहाड़ से जीवन का
हिसाब कैसे होगा ?
सब जुटाना होगा।

गर्व से क्या होगा ?
कल फिर कोई शहीद होगा।
सारे देश को गर्व होगा।
फिर क्या होगा ?

कभी सोचा ?
बस गर्व करने से क्या होगा ?

कभी नहीं सोचा।
क्योंकि हमारा अपना
शहीद नहीं हुआ।

जो शहीद हुआ।
आंकड़ा था।
अपना नहीं था।
इसलिए फिर गर्व हुआ।

पर उसने कहा -
हम हमेशा,
गर्व तो नहीं करते रह सकते।

रविवार, 16 सितंबर 2018

संध्या वंदन


सांझ की लौटती धूप
धीरे-धीरे आती है,
सोच में डूबी हौले-हौले
भोले बच्चों जैसी
फूल-पत्तियों को..
सरल सलोने स्वप्नों को
दुलारती है ।
हल्की-सी बयार से
पीठ थपथपाती है ।

बस इतनी-सी बात पर
शाम रंग-बिरंगे दुपट्टों-सी
झटपट रंग जाती है ।
थके-हारे मन सी
माथे की शिकन-सी
आसमान की
सलेटी सिलवटों को,
कल्पना की कूची से
कभी चटक कभी गहरा
गुलाबी,नारंगी,जामुनी और
नीलम से नीला रंग कर
रुपहला बना देती है ।

जीवन के भले-बुरे 
सारे रंगों का दिलचस्प
कोलाज बना देती है ।

स्मरण कराती है ..
उठो अब दिया-बाती करो ।
संध्या वंदन करो ।
चलो आगे बढ़ो ।
समय का पथ प्रशस्त करो ।

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

उनका भी त्यौहार है


उनका भी त्यौहार है ।
उनका भी परिवार है ।

पर कहीं देश में बाढ़ है ।
कहीं आतंक की मार है ।
कौन संभालेगा ?

कौन जल प्रलय में डूबते को हाथ बढ़ाएगा ?
कौन अशक्त को कंधे पर लाद के लाएगा ?
कौन भूखे-प्यासों को राशन पहुंचाएगा ?
सर्वस्व गंवा बैठे जो उनको कौन दिलासा देगा ?

कौन दिन-रात सीमा पर अलख जगाएगा ?
कौन अनजान खतरों को चुनौती देगा ?
कौन हर रोज़ आज़ादी का परचम फहराएगा ?
कौन जान पर खेल कर हमारी जान बचाएगा ?

हम विश्लेषण करते हैं ।
वो काम करते हैं ।
हम दोषारोपण करते हैं ।
वो समाधान करते हैं।

धन्य हैं जो ऐसा नेक काम करते है ।
जान और जवानी क़ुर्बान करते हैं ।1
अपने श्रम से देश का रौशन नाम करते हैं ।
बड़े नाज़ से हम जिनको जवान कहते हैं ।
हम भारतवासी इन जांबाज़ों को प्रणाम करते हैं ।

उनके भी अपने कहीं बसते हैं ।
उनके भी अपने घर होते हैं ।

उनका भी त्यौहार है ।
उनका भी परिवार है ।

पर सेवा ही उनके जीवन का सार है ।
देश की हिफाज़त ही इनका त्यौहार है ।

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

मन भर आकाश


स्टीफ़न हॉकिंग ने कैसे 
एक अर्थपूर्ण 
शानदार जीवन जिया ?
काटा नहीं  . . जिया। 

कुछ भी तो नहीं था,
तन के नाम पर। 
पर मन भर 
असीम आकाश था। 
जिसमें जीवट नाम का 
प्रखर सूर्य चमकता था। 
संवेदनशील धैर्य का चंद्रमा 
शिफ्ट ड्यूटी करता था। 
विलक्षण प्रतिभा पंख फैलाये 
निरंतर उड़ान भरती थी। 
और एक बात थी। 

इस वैज्ञानिक ने अपने 
जीवन की रिक्तता का 
कभी अफ़सोस नहीं किया। 
मस्तिष्क की अपार संभावनाएं 
अपनी सोच में समेट कर
जीवन उत्सव की तरह जिया।