कि
जीवन की विसंगतियां
पेंसिल से लिखी होतीं..
बर्दाश्त से ज़्यादा
दुखने पर
रबर से मिटा दी जातीं ।
जब कि ये सारी बातें
मन की दीवार पर
सौ फीसदी
कील की तरह गड़ जातीं ।
पर कम से कम
जब तक
कील पर टंगी
मनचाही तस्वीर
हटाई न जाती ,
तब तक
इतनी बेढंगी कील
दिन-रात सामने
नज़र तो न आती ।
पर पेंसिल की नोंक
लिखते-लिखते
बार बार
टूट जो जाती है ,
फिर नए सिरे से
तराशी जाती है..
रबर भी अक्सर
गुम हो जाती है ।
तो इतनी मगजमारी
कौन करे ?
बेहतर है कि
जो
जिसके लिए
लिखा गया है ,
उस पेचीदा दस्तावेज़ को
वो
पूरा पढ़े ..
और फिर लड़े
अपने लिए
अपने बूते पर ।
जिस लिखे को
मिटाया नहीं जा सकता ।
सुधारा नहीं जा सकता ।
उसे बस
जिया जा सकता है,
कील पर टंगी
मनचाही तस्वीर के लिए ।
बर्दाश्त से ज़्यादा
दुखने पर
रबर से मिटा दी जातीं ।
जब कि ये सारी बातें
मन की दीवार पर
सौ फीसदी
कील की तरह गड़ जातीं ।
पर कम से कम
जब तक
कील पर टंगी
मनचाही तस्वीर
हटाई न जाती ,
तब तक
इतनी बेढंगी कील
दिन-रात सामने
नज़र तो न आती ।
पर पेंसिल की नोंक
लिखते-लिखते
बार बार
टूट जो जाती है ,
फिर नए सिरे से
तराशी जाती है..
रबर भी अक्सर
गुम हो जाती है ।
तो इतनी मगजमारी
कौन करे ?
बेहतर है कि
जो
जिसके लिए
लिखा गया है ,
उस पेचीदा दस्तावेज़ को
वो
पूरा पढ़े ..
और फिर लड़े
अपने लिए
अपने बूते पर ।
जिस लिखे को
मिटाया नहीं जा सकता ।
सुधारा नहीं जा सकता ।
उसे बस
जिया जा सकता है,
कील पर टंगी
मनचाही तस्वीर के लिए ।