सोमवार, 23 नवंबर 2009

कील

काश...
कि

जीवन
की विसंगतियां
पेंसिल से लिखी होतीं..
बर्दाश्त
से ज़्यादा
दुखने
पर
रबर
से मिटा दी जातीं

जब
कि ये सारी बातें
मन
की दीवार पर
सौ
फीसदी
कील
की तरह गड़ जातीं
पर
कम से कम
जब
तक
कील
पर टंगी
मनचाही
तस्वीर
हटाई
जाती ,
तब
तक
इतनी
बेढंगी कील
दिन
-रात सामने
नज़र
तो आती

पर
पेंसिल की नोंक
लिखते
-लिखते
बार
बार
टूट
जो जाती है ,
फिर
नए सिरे से
तराशी
जाती है..
रबर
भी अक्सर
गुम
हो जाती है

तो इतनी मगजमारी
कौन
करे ?
बेहतर
है कि
जो

जिसके
लिए
लिखा
गया है ,
उस
पेचीदा दस्तावेज़ को
वो

पूरा
पढ़े ..
और
फिर लड़े
अपने
लिए
अपने
बूते पर

जिस
लिखे को
मिटाया
नहीं जा सकता
सुधारा
नहीं जा सकता
उसे
बस
जिया
जा सकता है,
कील
पर टंगी
मनचाही
तस्वीर के लिए

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

जीवन मुझे जी भर कर जीना है

जीवन का रस चखो

खूब काम करो
काम का मज़ा लो
जितना सीख सको,
जिससे सीख सको... सीखो
जीवन का रस चखो

अभी तो

मन की कई बातें,
कहनी और सुननी हैं
सोची-समझी बातें,
गुननी और करनी हैं

प्यार और मन्दिर का प्रसाद
बांटना है
तुलसी की चौपाइयों को
आत्मसात करना है

भाग्य का लिखा
बांचना है
जो लिखा है उसे
वश में करना है

मन को साधना है
अपने लक्ष्य को पाना है

जी भर कर
गाना-गुनगुनाना है
कलेजे की हूक को
कोयल की कूक
बनाना है

जहाँ हिम्मत टूटे ..
पांव फिसले ..

संभल कर - तुरंत
बिना बात
ढोलक की थाप
पर
झूम कर
ठुमका लगाना है

खुशहाली के बीज
बोना है
उम्मीद की कोपलों को
सींचना - सहलाना है

जीवन के कैनवस में
रंग भरना है
अनुभूति के
हर रंग में
रंगना है

इस क्षण को जीना है
हर क्षण में जीवन पिरोना है

शनिवार, 19 सितंबर 2009

प्रतिबिंब

होगा वही
जो
होना होगा .
अक्सर बुरा होगा .
फिर कुछ अच्छा होगा .

जो भी होगा
ज़रूर उसका
कोई
मतलब होगा .

अंधेरा होगा
तो
उम्मीद का
दीया जलेगा .
मेहनत का
सितारा चमकेगा .

उजाला होगा
तो
जीवन का
कोना - कोना
साफ़-साफ़ दिखेगा .

समय जैसा भी होगा ..
हमारी सोच का प्रतिबिंब होगा .