सही वक्त पर
एक फूल भी खिल जाए
तो बचा लेता है
किसी को मुरझाने से
टूट कर बिखर जाने से ।
जब ज़रूरत हो तब
कोई साथ खङा हो जाए
कंधे पर रख कर हाथ
तो लौट आता है
खोया हुआ आत्मविश्वास।
समय रहते ही
कोई जो पूछ ले
पास बैठे अनमने
अपरिचित का हाल,
तो हो सकता है
टल जाए वह
आत्मघाती घङी,
जब धक्के खा-खा कर
आदमी का चिंतन
हो जाता है चेतना शून्य ।
एक पल ही होता है वह
जिसकी धुरी पर
टिका होता है विवेक,
तट से जा लगती है
भूली-भटकी जीवन नैया..
इस पार या उस पार ।
एक ही क्षण होता है वह
दैदीप्यमान आत्मबोध का,
जब अंतर के हाहाकार से
कांपती लौ को स्थिर कर
साध लेता है धैर्य का संपुट ।