शनिवार, 11 जून 2022

वह एक क्षण



सही वक्त पर 

एक फूल भी खिल जाए

तो बचा लेता है 

किसी को मुरझाने से

टूट कर बिखर जाने से ।


जब ज़रूरत हो तब

कोई साथ खङा हो जाए

कंधे पर रख कर हाथ

तो लौट आता है 

खोया हुआ आत्मविश्वास।


समय रहते ही

कोई जो पूछ ले 

पास बैठे अनमने

अपरिचित का हाल,

तो हो सकता है 

टल जाए वह

आत्मघाती घङी,

जब धक्के खा-खा कर 

आदमी का चिंतन

हो जाता है चेतना शून्य ।


एक पल ही होता है वह

जिसकी धुरी पर 

टिका होता है विवेक,

तट से जा लगती है 

भूली-भटकी जीवन नैया..

इस पार या उस पार 


एक ही क्षण होता है वह

दैदीप्यमान आत्मबोध का,

जब अंतर के हाहाकार से

कांपती लौ को स्थिर कर 

साध लेता है धैर्य का संपुट ।



सोमवार, 6 जून 2022

पेङ रहेंगे हमेशा

कल हो सकता है,
मैं रहूँ ना रहूँ,
पर हमेशा रहेंगे
तुम्हारी स्मृति में 
वे पेङ-पौधे हरे-भरे
जो हमने साथ लगाए..

वह नदी, जल जिसका
कभी नहीं ठहरता,
जिसकी धारा में हमने
दोनों में दीप धर करबद्ध
अनंत को संदेश पठाए..

यह नील नभ का विस्तार 
जिसमें अंतरतम के भाव
बादल बन छाए, गहराए
और बरसे निर्द्वन्द्व मूसलाधार..

वह बंजारन पवन सघन वन
झूमती, कभी सीटी बजाती
स्निग्ध बयार माथा सहलाती..

चूल्हे की आंच पर सिंकती
कच्ची-पक्की भावनाएं..
ये सब रहेंगे तुम्हारे साथ ।

मुङ कर देखो यदि अकस्मात 
संभावनाओं को देखना, 
असफलताओं को नहीं ।
अनुपस्थिति से 
विचलित मत होना ।

कल हो सकता है,
मैं रहूँ ना रहूँ,
पर हमेशा रहेंगे
तुम्हारी स्मृति में 
वे पेङ-पौधे हरे-भरे
जो हमने साथ लगाए..
उनकी घनी छाँव तले
बैठना और संकल्प लेना..
धरा को बनाना हरा-भरा ।


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चित्र - हस्तकला प्रदर्शिनियों में उड़ीसा के ताल पात्र पर बने चित्रों के स्टाल पर अवश्य गए होंगे 
वहीं से ली था यह जीवंत कलाकृति । प्रकृति से विशेषकर वृक्ष से जुड़े जीवन की सहज सरल अनुकृति । अनाम कलाकार का सादर अभिनंदन  अनंत आभार 



रविवार, 5 जून 2022

चलो रोपते हैं एक पौधा


चलो इस उम्मीद में 
रोपते हैं एक पौधा, 
कि एक दिन वह  
दुआ बन कर फलेगा ।
जो बरसों बाद घना होगा,
मज़बूत तना होगा ।
शाखों पर नीङ बना होगा, 
चिङिया का कुनबा होगा ।
टहनियों का झूला होगा ।
पक्षियों का कलरव होगा ।
पा कर आमंत्रण छाँव का
डेरा डालेगा गुज़रने वाला,
कोई कुटुंब थका-हारा ।
सुन कर बिटिया का तुतलाना 
कान लगा कर बैठा तोता
कंधे पर आ बैठेगा ।
नन्ही हथेली से चुग कर दाना
फुर्र उङेगी छोटी-सी चिङिया !
कौतुक देख हँस देगी माँ !
और पिता कृतज्ञ मना सोचेगा 
किसने रोपा होगा यह हरा-भरा
वृक्ष विशाल छायादार घना-सा ..
पत्ता-पत्ता झूम-झूम पंखा झलेगा
ठंडी बयार का झोंका थपकी देगा
आश्वस्त पाकर हरीतिमा की छत्रछाया  
धरती बिछा निश्चिंत सो जाएगा पिता ।

चलो रोपते हैं एक पौधा । उम्मीद का ।
बरसों बाद जिसकी ठंडी छांव में बैठा
कोई थका-हारा हो कृतज्ञ देगा दुआ ।
शायद वो भी फिर रोपेगा एक पौधा  
जो बन कर सघन वृक्ष छांव घनी देगा ।