हर रोज़ उस रास्ते से
गुज़रते देख कर मुझे
क्या कहा होगा दूसरे पेड़ों से
उस अकेले सोनमोहर ने ?
एक दिन इस थके-माँदे
राहगीर के रास्ते में ,
क्यूँ ना बिछा दें
फूल बहुत सारे ?
एक दिन के लिए ,
शायद बदल जाएं
उसके चेहरे के,
भाव थके - थके से ।
रास आ जाएं
करतब ज़िंदगी के ।
बाहें फैला दें
दायरे सोच के ।
तो क्यूँ ना बिछा दें
फूल बहुत सारे ?