शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011


जिसको जितना प्यार करो
वो उतना दुःख दे जाता है 

सच बोलो सबका कहना है
सच सहना किसको आता है 

जो शब्द नहीं कह पाते हैं 
वो चुप रहना कह जाता है 

जब सूरज भी बुझ जाता है
इक दिया उजाला लाता है

सीखो जितना भी सीख सको
अपना हुनर ही काम आता है 

जो बातें ख़ुद न सीख सके
वो वक़्त हमें सिखलाता है

 

रविवार, 17 अप्रैल 2011

चुपचाप 

आंकड़े
बहुत सारे
आपको मिल जायेंगे ,
जो बताएँगे ,
लोग कितने
दिल का धड़कना
रुक जाने से ,
वक़्त - बेवक्त मर जाते हैं .

पर कोई नहीं जान पाता
कि दिल टूटने से      
कौन कब मर जाता है .

क्योंकि
दिल के टूटने की
आवाज़ नहीं होती .
आवाज़ क्या ..
आहट तक 
नहीं होती .

चुपचाप 
दिल धड़कता रहता है .
और दुनिया का झमेला चलता रहता है .

दिल टूटने का
सिर्फ उसको पता
चलता है ,
जिसका 
दिल टूटता है .

क्योंकि
दिल के टूटने की
आवाज़ नहीं होती .
आवाज़ क्या ..
आहट तक 
नहीं होती .

चुपचाप 
दिल धड़कता रहता है .
और दुनिया का झमेला चलता रहता है .

दिल का टूटना
एक गुम चोट होती है . 
किसी को नहीं चलता पता
और तमाम दुनिया
तबाह होती है .

नब्ज़ चलती है .
उम्र दराज़ होती है .
पर ज़िन्दगी ?
ज़िन्दगी बेहोश ..
बस .. सांस लेती है .

शायद कभी 
आये कोई ,
मन की पाती
बांचे कोई ,
बात अनकही
समझ जाये कोई.
अपनाये, 
नयी ज़िन्दगी दे जाये .
अपने आंसुओं से
मुरझाई 
मन की मिटटी
सींच जाये कोई . 
 
शायद
कभी कोई आये
फिर से जीना सिखाये ,
जीने की वजह दे जाये .
बहते आंसुओं को पिरो कर
नदी की तरह
आत्मसात करना
और बहना 
सिखा जाये . 



रविवार, 3 अप्रैल 2011


आघात

सदमा पहुंचना किसे कहते हैं, मुझे नहीं पता. 
हलाल होना क्या होता है, मैंने नहीं देखा.

शायद
धीरे-धीरे
अस्तित्व में दरारें पड़ना,
सदमा कहलाता होगा .

शायद
बार-बार
भरोसे का टूटना,
हलाल होना होता होगा.

क्यों ?
इस शब्द का विशलेषण ही
एहसास की 
कमर तोड़ देता होगा .

इस सारे झमेले के बीच
भावुक मन ही
पागल करार दिया जाता होगा .

सोच का बारूद फटना ही
पागलपन होता होगा,
शायद.

नियति का संवेदनहीन
प्रहार ही
विश्वासघात का दूसरा
नाम होगा .
शायद.

ऐसी परिस्थिति में
हे ईश्वर तुमसे ..
प्रार्थना क्या करूँ ?
तुमसे क्या मांगूं ?

अभय का वरदान ?
पर मैं तो देवता नहीं हूँ.
पौराणिक चरित्र भी नहीं हूँ.
मनुष्य के
मन की मिट्टी में
संवेदना की खाद
तुम्ही ने तो डाली है .

द्वन्द अंतरतम का
मन की पीड़ा का
अंकुर बन कर फूटेगा ही.
पौधा पनपेगा ही.

पर इतना तो करो -
फल कड़वा न हो .
फूलों की खुशबू कम ना हो .
पेड़ का तना कमज़ोर ना हो.  

कोई भी
आघात
जड़ें खोद न पाये मेरी .

भले ही
आघात पर आघात हो.
भले ही
सब कुछ मेरा
टूट कर
गया हो बिखर
भीतर ही भीतर.

फिर भी
ह्रदय का स्पंदन,
मेरा पागल मन,
स्वस्थ चिंतन,
बचा रहे.
जैसा था,
वैसा ही रहे.

क्योंकि
पतझड़ का 
बार-बार आना,
मौसम का बदलना,
वार पर वार होना,
सह लेगा मेरा मन.

पर जब तक जीवन है,
जीवन का कुछ प्रयोजन है,
ह्रदय मेरा 
सूखा ठूंठ
हो कर 
न रह जाये,
संवेदनहीन 
ना हो जाये.

इतनी कृपा करना -
आत्मसम्मान मेरा
आत्मबोध की भूमि पर
अडिग रहे.
वटवृक्ष बन कर
छाया देता रहे.

मनोबल मेरा
आघात भवितव्य का 
सहे
पर अपनी ज़िद पर अड़ा रहे. 

सीधा खड़ा रहे.