स्वामीजी,
आपका चिर-परिचित चित्र,
हमारे मन - मस्तिष्क पर
बरसों से अंकित है .
अंकित है आपकी छवि
नोटबुक के मुखपृष्ठ पर,
दीवार पर लगे पोस्टर पर,
सिक्के पर,
डाक टिकट पर .
हमारी दिनचर्या का
अभिन्न अंग हैं आप .
आप . . आप के विचार .
पर क्या सचमुच ?
इतना बहुत है क्या ?
आपके विचार
डायरी में नोट कर लेना ?
और दराज में सहेज कर रख लेना ?
दराज को खोलना,
डायरी में लिखे विचारों को
धूप - हवा देना
भी ज़रूरी नहीं है क्या ?
विचारों को मथना . .
आत्मचिंतन करना . .
कर्म करना . .
आपने यही मन्त्र दिया था ना ?
आपके विचारों के प्रकाश में
अपना धर्म बाँचना
और कर्म की कलम से
श्रम की परिभाषा लिखना,
आपकी शिक्षा को गुनना
मुझसे हो सके,
आशीर्वाद दीजिये ऐसा.
आपको अर्पित कर सकूं गुरु दक्षिणा
आत्मबल दीजियेगा इतना .