चिट्ठी में लिखी बात
सुधियों की सौगात ।
रह-रह कर आती याद
थाम लेती बार-बार ।
बस खोलते ही दराज
उमङते ह्रदय के भाव ।
लिखावट में साकार
अपने आ बैठते पास ।
कुशल-क्षेम के बाद
हिदायतें लगातार..
शब्द-शब्द से छलकता
प्यार भरा सरोकार ।
फिर सिलसिलेवार,
उस पार के समाचार ।
कभी मदद की गुहार ।
याद रखने की फ़रियाद।
लौट आने की मनुहार।
व्याकुल मन की पुकार ।
विचारों का आदान-प्रदान,
अनुभव से अर्जित समाधान ।
चिट्ठी लिखी जाती थी,
मानो बात हो जाती थी ।
दूरियाँ पाट देती थी ।
चिट्ठी वो ऊँची पतंग थी ।
डाक बाबू नहीं,आता था वैद्य
चिट्ठियाँ करती थीं उपचार !
चिट्ठी लिख होता था संवाद ..
चिट्ठी का अब भी रहता है इंतज़ार ।
चिट्ठी की खुशबू अब तो बीते दिनों की बात हो गयी है। स्मृतियों के सुंगध से सरोबार सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता जी , धन्यवाद। बहुत दिनों बाद हुआ संवाद। नमस्ते।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, जोशी जी।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आलोक जी। नमस्ते।
हटाएंवाह! बहुत खूबसूरत सृजन!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, शुभ जी। नमस्ते।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद। नमस्ते।
हटाएंचिट्टी पाने का आनन्द हीनिराला है
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