बप्पा तुम आ गए ,
कोलाहल हृदय के
हुए शांत ।
क्लांत चेतना ने
पाया विश्राम ।
तुम पिता मेरे
स्वरुप विशाल,
तुम्हारी गोद में
रख कर सिर
सो जाऊँ निश्चिंत ,
निर्द्वंद, निर्भय ।
रख देना वरद हस्त
मेरे शीष पर,
सहला देना
मस्तक मेरा ।
इस अनुभूति के
पश्चात ..
और मुझे चाहिए क्या ?
गणपति बप्पा मोरया !
मंगल मूर्ति मोरया ..
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दर्शन लाभ सविनय आभार : श्री करन सिंह पति
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द सोमवार 09 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद , दिग्विजय जी।
हटाएंयशोदा जी, अस्वस्थ हैं क्या ?
गणपति गजानन कृपया करें ।
अच्छे स्वास्थ्य के अध्याय का शुभारंभ हो । नमस्ते।
सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंभक्तिभाव में आप्लावित सरस रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर
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