सोमवार, 15 मई 2023

संदर्भ


संदर्भ बदलते ही
अर्थ बदल जाते हैं ।
बात करो मत
शाश्वत सत्य की !
एक ही क्षण में 
मूल्य बदल जाते हैं ।
मूल्य होते हैं लचीले ..
किसी भी सांचे में 
ढाल दिये जाते हैं ।
शुद्धता मापने के 
पैमाने बदल जाते हैं ।
हांफती ज़िन्दगी की 
जद्दोजहद में 
हर चीज़ देखने के 
ढंग बदल जाते हैं ।
साथ चलते-चलते 
लोग बदल जाते हैं ।
नाम उसूलों के  
वही रहते हैं ।
काम और दाम 
बदल जाते हैं ।
आदमी की 
अहमियत ही क्या है ?
पलक झपकते ही
संज्ञा से 
सर्वनाम हो जाते हैं ।


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (18-05-2023) को   "काहे का अभिमान करें"   (चर्चा-अंक 4663)   पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (16-05-2023) को   "काहे का अभिमान करें"   (चर्चा-अंक 4663)   पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सही कहा आपने कि संदर्भ बदलते ही अर्थ बदल जाते हैं।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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