बहुत दिनों बाद
लौटी एक किताब..
पुस्तकालय ।
शेल्फ़ में रखी गई
जैसे ही, हर्ष सहित
हुआ स्वागत ।
सारी किताबों ने
ज़ाहिर की हैरानी,
इतने दिन बीते
कहाँ रहे भाई ?
कैसे और क्या बताऊँ ?
जीवन के घटनाक्रम
बदल देते हैं सोच ।
शायद समझा पाऊँ ।
इस बार मुझे
जो लेकर गई थी,
अकेली रहती थी
साथ में छोटे बच्चे ।
दिन भर खटती थी,
मुझे पढ़ कर रोती थी,
बातें करती थी मानो
मेरे सिवा उसको
कोई समझता न था ।
बच्चे जब घर आते
खिलखिलाते,
अनभिज्ञ माँ के
दैनिक संघर्ष से ।
माँ भी सब भूल
मेरे पन्नों पर
लिखी कथाओं से,
व्यथा छुपा के,
परी कथा बना के
बच्चों को रोज़
सुनाती थी ।
ज़िम्मेदारी अपनी
समझने लगी थी मैं भी ।
फ़िक्रमंद रहती थी ।
वो जब भी मुझे
लौटाने की सोचती,
मैं खो जाती ।
पर एक दिन उस पर
धुन हुई सवार ।
ढ़ूँढ़ निकाला मुझे
और बहुत देर तक
हाथों में थामे बैठी रही ।
विदा की वेला आई ।
आंखें छलछलाई ।
तुम्हारी बातें मेरे
बहुत काम आईं ।
मुझमें हिम्मत जगाई ।
तुमने ह्रदय पर रखी
भारी शिला हटाई ।
उस क्षण जाना,
उत्तरदायित्व होता है
हर किताब का ।
लिखे गए प्रत्येक
अनुभूत शब्द का ।
ये फ़र्ज़ है हमारा ।
संजीवनी बूटी को
मूर्छित चेतना तक
अविलंब पहुँचाना ।
अवचेतन में बो देना ।
सुप्त प्राण जगाना ।
लोग जिल्द
और नाम देख कर
ज़रूर खरीदते होंगे,
या पढ़ने को लेते होंगे किताबें,
पर पढ़ने-पढ़ते जो थाम ले हाथ,
उसी किताब का मानते हैं कहना,
जनम भर करते हैं जतन ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 16 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
धन्यवाद,पम्मी जी ।
हटाएंकल का इंतज़ार रहेगा ।
सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद,ओंकार जी ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (16-03-2022) को चर्चा मंच "होली की दस्तूर निराला" (चर्चा अंक-4371) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपका सदा ही आभार, आलोक जी ।
हटाएंबहुत बढ़िया। किताबों से अच्छा कोई दोस्त नहीं लेकिन आजकल ऐसे दोस्त हाथ में कम और ज्यादातर शेल्फ में सजे मिलते हैं।
जवाब देंहटाएंजितने साधन बढ़े, उतना बंट गया आदमी । उस पर हर चीज़ में जल्दी । किताब पढ़ने वाला चैन कहाँ रहा ?
हटाएंशुक्रिया, माथुर साहब । आपने खूब कहा !
बहुत सुंदर किताबों की कहानी किताबों की जबानी।
जवाब देंहटाएंसराहनीय सृजन।
सादर
बहुर सुंदर भावों को संजोती रचना
जवाब देंहटाएंपुस्तकों का दर्द बयां करती हृदय स्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंसार्थक और अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंबधाई