गुलाब की तरह खिलो
भीनी-भीनी खुश्बू बनो
भावुक दिलों में बसो
किसने रोका है ?
खुशकिस्मती पर अपनी
खूब इतराओ !
अपना हुनर आज़माओ !
बेफ़िक्र मुस्कुराओ !
किसने टोका है ?
पर भूलना नहीं,
रंगों और खुश्बू का
है कांटों से,
साथ हमेशा से,
चोली दामन का ।
गुलाब का इत्र बनो ।
गुलकंद बनो ! गुलफ़ाम बनो।
कद्रदानों के बीच रहो ।
कोमल हो।
काँटों के मध्य उगो ।
महफ़ूज़ रहो ।
पर शिकायत ना करो ।
काँटों से परहेज न करो ।
काँटों के बीचों-बीच
सर उठा के जियो ।
काँटों को अपना कर जियो ।
खट कर, डट कर, टूट कर !
अड़ कर जियो !
जो होगा सो देखा जायेगा !
जब बीतेगा तब झेला जायेगा !
मुरझाने से पहले तक..
गुलाब हो, गुलाब की तरह जियो !
ठाठ से खिलो !
किसने रोका है ?
बेहतरीन रचना आदरणीया।
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद. अनुराधा जी.
हटाएंप्रेरणादायक, सुंदर रचना
हटाएंहौसला बना रहे. यही कोशिश रहती है.
हटाएंअनाम पाठक को सादर धन्यवाद. नमस्ते.
बहुत सुन्दर और अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आलोक जी ।
हटाएंक्या आपने ऑडियो भी सुना ?
अब गुलाब के साथ काँटे तो होंगे ही । बेहतरीन रचना ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, संगीता जी ।
हटाएंकांटे तो होंगे ही ।
स्वीकार करो और महफ़ूज़ रहो ।
या बिंध जाओ रो रो कर ।
आपने क्या ऑडियो सुना?
अभी सुना । आपका अन्दाज़ेबयाँ गज़ब का है ।।मज़ा आया सुनने में ।।
हटाएंजान कर ख़ुशी हुई, संगीता जी. कभी किसी ऑडियो साहित्य के प्रोजेक्ट के बारे में पता चले तो बताइयेगा. जुड़ने के लिए लालायित हूँ.
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (११ -०२ -२०२२ ) को
'मन है बहुत उदास'(चर्चा अंक-४३३७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
धन्यवाद, अनीता जी ।
हटाएंउदासी दूर होगी चर्चा से ।
कृपया ऑडियो भी सुनियेगा ।
बहुत खूब लिखा
हटाएंअनाम पाठक का सादर धन्यवाद.नमस्ते.
हटाएंजहाँ गुलाब की उपलब्द्धि हो वहां काँटों से कौन डरेगा ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
धन्यवाद, नासवा जी.
हटाएंफ़्लिप बुक "गर्भ नाल" में आपकी रचनाएं पढ़ी कल ही. अच्छी लगीं.
इसमें डॉक्टर स्वप्ना शर्मा का लेख छपा है. उन्ही से मिला.
यूरेका वाली फीलिंग आई आपका नाम देख कर : )
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, सरिता जी.
हटाएंआप शायद पहली बार नमस्ते पर आई हैं. सस्नेह स्वागत है.
आशा है, आपका अनुभव अच्छा रहा होगा. नमस्ते.
मधुर गुंजन के मध्य अति सुन्दर शब्द-प्रवाह। सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सर-आँखों पर. नमस्ते, अमृता जी. स्वागत है. पढ़ती रहिएगा.
हटाएंउम्मीद है,आपको अच्छा लगेगा.
"गुलाब का इत्र बनो ।
जवाब देंहटाएंगुलकंद बनो ! गुलफ़ाम बनो।
कद्रदानों के बीच रहो ।"
बहुत ही उम्दा !!
शुक्रिया ! आपका नमस्ते पर स्वागत है, पढने और अपने विचार साझा करने के लिए .
हटाएंउत्साह वर्धक और प्रेरणा दायक रचना।
जवाब देंहटाएंबेहद ख़ूबसूरत रचना। बधाई।
नई पोस्ट- CYCLAMEN COUM : ख़ूबसूरती की बला
धन्यवाद, रोहितास जी.
हटाएंजी ये तो गुलाब का कमाल है !
जिसके सर पर काँटों का ताज है !
यूँ ही नहीं फूलों का राजा गुलाब है !
शानदार तुकबंदी
जवाब देंहटाएंजी, शुक्रिया !
हटाएंइस दुनिया में तुक ही तो नहीं मिलती !
नमस्ते पर आपका स्वागत है.
उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जनाब ।
हटाएंकहीं पढ़ा था की भक्ति का पथ गुलाब के फूल समान कोमल होता है, पर उस कोमल पुष्प की रक्षा करने के लिए कांटे रूपी कर्म कांड की आवश्यकता होती है।
जवाब देंहटाएंपता नही की ये बात कितनी सच है, पर कविता सुंदर लगी। फूल हैं तो काटें भी होंगे
अनमोल सा, खम्मा घणी . आपने बड़ी अच्छी बात बताई. सुखद अनुभूति हुई. बातों की कड़ी से कड़ी जुड़ती जाती है. जैसी दृष्टि, वैसा ही दृश्य.
हटाएंधन्यवाद. नमस्ते.