असत्य तो हारता ही है अंततः
बेशक़ हम समझ ही ना पाएं,
भेद न कर पाएं हार-जीत में।
चूक जाए विश्लेषण हमारा।
भ्रमित कर दे अन्वेषण हमारा।
याद करो जब घटती है दुर्घटना
अथवा होता है कुछ बहुत बुरा
आदमी अनभिज्ञ बन कर है पूछता
मेरे ही साथ आखिर ऐसा क्यों हुआ ?
मैंने क्या किया था जो यह दंड मिला ?
उसे याद नहीं आता अपना किया।
अपने ही कर्मों का मिलता है सिला।
सोचो तो अवश्य मिल जाएगा सिरा।
हर दृष्टांत रामलीला जैसा
स्पष्ट कथानक नहीं होता।
साफ़-साफ़ दिखाई नहीं देता
हमेशा न्याय विधाता का
दो और दो चार के सामान।
पर कचोटता है अनुचित जो किया।
आजीवन प्रेत बन करता है पीछा।
इसलिए विश्वास डिगने मत देना।
संशय को सेंध मत मारने देना।
जो करना चाहिए तुम वही करना।
दूसरों के किये का हिसाब तुम्हें नहीं देना।
तुमसे पूछा जायेगा कि तुमने क्या किया ?
Poignant! बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंPoignant are the realizations that come as you grow n go on living.
हटाएंThank you Sa.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (11-10-2019) को "सुहानी न फिर चाँदनी रात होती" (चर्चा अंक- 3485) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
विनम्र आभार शास्त्रीजी ।
हटाएंचर्चा चलती रहे ।
बढ़िया रहा !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ।
हटाएंआपका बहुत दिनों में आना हुआ ।
अच्छा लगा ।
APPROVAL ??
जवाब देंहटाएंNamastey ! sorry for coming
गगन जी, approval शब्द पर ना जाइये । अन्यथा ना लीजिए । यह उन वाहियात या विज्ञापन वाली टिप्पणियों के लिए है जो आप भी पढ़ना पसंद नहीं करेंगे । आशा है, यह जान कर आपकी नाराज़गी दूर हुई होगी ।
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