हिंदी
भाषा नहीं
नदी है,
जो अविरल
बहती है,
गंगा यमुना
कावेरी गोदावरी
चेनाब रावी
ब्रह्मपुत्र की तरह
भाषा नहीं
नदी है,
जो अविरल
बहती है,
गंगा यमुना
कावेरी गोदावरी
चेनाब रावी
ब्रह्मपुत्र की तरह
देश भर की
यात्रा करती हुई,हर तट से
गले मिलती,
सुख-दुख बटोरती,
लोक संस्कृति
और बोली
समेटती हुई,
बहती ही जाती है ।
यह भाषा ऐसी है ।
सबको अपनाती है ।
अपनी लगती है ।
सबको अपनाती है ।
अपनी लगती है ।
जैसे नदियां जोड़ती हैं,
सारे देश की कड़ी
स्नायुतंत्र की भांति,
धमनियों में हृदय की
धड़कती है हिंदी ।
सारे देश की कड़ी
स्नायुतंत्र की भांति,
धमनियों में हृदय की
धड़कती है हिंदी ।

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 15 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिग्विजयजी, हार्दिक धन्यवाद. मौन कमल सा खिल उठा.
हटाएंधन्यवाद शास्त्रीजी. अच्छा है चर्चा का विषय. वनवास भी चौदह वर्ष में पूरा हो जाता है.
जवाब देंहटाएं