बुधवार, 31 जुलाई 2019

नमक का दारोगा


नमक का दारोगा  ?
अजी ऐसे किरदार, 
जो अपने ईमान पर 
चट्टान की तरह 
अडिग रहते हैं,
वो असल ज़िंदगी में 
कहाँ होते हैं ?

इतना कह कर हम 

छुटकारा पा लेते हैं। 

असल ज़िन्दगी में भी 

नमक के दारोगा होते ,
अगर हम दूसरों से नहीं 
ख़ुद से उम्मीद रखते। 

यदि हम सचमुच चाहते,  
तो दूसरों में नहीं ढूंढते  ..  
अपने भीतर ही खोजते  
नमक का दारोगा। 

अगर हमें अच्छे लगते हैं 
ईमानदार किताबों में, 
तो हम असल जिंदगी का 
उन्हें हिस्सा क्यों नहीं बनाते ? 
क्यों नहीं बन कर दिखाते वैसा 
जैसा था नमक का दारोगा। 

14 टिप्‍पणियां:

  1. खारा नमक, खरी बात,खरी कविता।

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    1. नमक सत्याग्रह ..
      और अपने-अपने जीवन की
      दांडी यात्रा ।

      "It's really a wonder that I haven't dropped all my ideals, because they seem so absurd and impossible to carry out. Yet I keep them, because in spite of everything, I still believe that people are really good at heart."

      -- Anne Frank

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  2. "मैं मजदूर हूँ. जिस दिन ना लिखूँ उस दिन मुझे रोटी खाने का अधिकार नहीं."

    मुंशी प्रेमचंद

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" गुरुवार 01 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मीना जी, अपनी चौपाल में शामिल करने के लिए शुक्रिया.
      ३१ तारीख का मुंशी प्रेमचंद अंक भी बहुत अच्छा लगा.

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  4. धन्यवाद शास्त्रीजी.
    मुंशी प्रेमचंद की कुछ कहानियां और पात्र मन में हमेशा दिया की लौ सामान बसे रहे. उनको समर्पित अंक में हमारी भावनाओं को भी आपने स्थान दिया. कृतज्ञ हूँ.
    सही जगह कभी-कभी ही मिलती है.

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  5. मुंशी प्रेमचंद साहित्य जगत में जगमगाता नाम ही नहीं अपितु हर लेखक का यथार्थ वादी स्वप्न है।
    बहुत अच्छी रचना आपकी..👌

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    1. श्वेता जी, आपका बहुत - बहुत धन्यवाद.
      बिल्कुल ठीक कहा आपने. मुंशी प्रेमचंद का लिखना और जीना एक सा था.
      वे हमारे आदर्श हैं.

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  6. गहन विचार सार्थक चिंतन देता कथन ।

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    1. हार्दिक आभार. बहुत दिनों बाद मन की वीणा के तार झंकृत हुए.
      कई बार मन में आया ..हम पढ़ते और भूल जाते हैं.फिर प्रयोजन क्या है पढने का ?
      ऐसे मनीषियों का साहित्य पढ़ना और गुनना उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है.

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  7. सही कहा सखी, बेहतरीन सृजन
    सादर

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    1. अनीता सखी, धन्यवाद. आपकी उदारता है यह सराहना.
      एक कोशिश है, मुंशी प्रेमचंद की विरासत को जीवन में संजोने की.

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  8. यदि हम सचमुच चाहते,
    तो दूसरों में नहीं ढूंढते ..
    अपने भीतर ही खोजते
    नमक का दारोगा।
    वाह बहुत सुन्दर भाव।
    राजीव उपाध्याय

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    1. RAJEEV Upadhyay जी, आपका हार्दिक आभार. नमस्ते पर आपका स्वागत है.

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