कोल्हू का बैल
उन्हें चाहिए . .
आकाओं को ।
कोल्हू का बैल
जो कभी चूँ तक ना करे ।
जो कहें, बस उतना करे ।
बस तेल बढ़िया निकलना चाहिए,
चारे का इंतज़ाम तो हो जाएगा ।
सवाल मत पूछा करो !
जी हजूरी किया करो ।
और खुश रहा करो ।
सर झुका कर चला करो !
और एक ही लीक पर चला करो !
देखो ! कोल्हू के चक्कर
पूरे मनोयोग से लगाया करो !
हम जो कहें करते जाया करो ।
सोचा मत करो ।
सोचने से ध्यान में खलल पड़ता है ।
केवल इस बात का ध्यान करो . .
कोल्हू का बैल नहीं रहा
तो कोल्हू का क्या होगा ?
बना बनाया खेल बिगड़ जाएगा ।
तेल ना निकला
तो क्या होगा तुम्हारा ?
कहाँ जाओगे ? क्या खाओगे ?
चारे का भी जो जुगाड़ ना हुआ ?
तो क्या होगा ?
क्या करोगे तुम ?
एक बैल कोल्हू की परिक्रमा के सिवा
और कर भी क्या सकता है ?
उसे तो कोल्हू के चारों तरफ़
घूमने के सिवा
कुछ आता ही नहीं . .
कभी सीखा ही नहीं !
नहीं ! नहीं ! ये ठीक नहीं !
जितनी दूर देखो
आँखों से पट्टी हटा कर . .
संभावनाएं नज़र आती हैं !
संभावनाओं का आभास होना भी
खतरे से ख़ाली नहीं !
तख़्ता पलट सकता है !
विप्लव हो सकता है !
इस पचड़े में ना पड़ो तो अच्छा !
वरना खुल जाएगा कच्चा चिटठा !
तुम एक निरे बैल !
तुम्हारी औकात ही क्या ?
मंडी में तुमसे हज़ार मिलते हैं !
चलो छोडो ! तुमसे बात करने का क्या फ़ायदा ?
तुम ठहरे निरे बैल !
सोच लो !
कोल्हू से बंधे रहे तो जीवन कट जाएगा ।
कोल्हू से बंध कर
अथक परिश्रम कर . . निर्द्वन्द जीवन जियो !
सुनो ! कर्म ही जीवन है !
चुपचाप चलते रहो लीक पर !
तेल निकलता रहेगा ।
तुम्हारा भला होगा ।
कोल्हू का बैल कभी घोड़ा नहीं हो सकता !
याद रखना !
छोड़ो फिजूल सपनों के बहकावे में आना !
काम करो ! और निरंतर पाठ करो !
समझो कोल्हू के बैल की महिमा !
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जवाब देंहटाएंआपकी यह कविता बहुत कुछ बयान कर रही है।
जवाब देंहटाएंजी । आप समझ रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंअक्षरशः सत्य है कि नहीं ? बताइए ।
सरकारी महकमे में काम करने वाले अधिकांश निष्ठावान कर्मचारियों की आपबीती होगी ये ।