शनिवार, 20 जून 2015

युद्ध

अपना महाभारत 
स्वयं ही 
लड़ना होता है ।

ख़ुद ही अर्जुन
ख़ुद ही श्रीकृष्ण 
बनना पड़ता है ।


1 टिप्पणी:

  1. और दुर्योधन भी। उसको मत भूलो। वह है तब हो तो युद्ध है। दुर्योधन = जिससे युद्ध में जीतना मुश्किल हो (दुर् – मुश्किल)। हमारी सौ ख़राबियाँ जिन्होंने अंधकार से जन्म लिया (अंधा पिता), उन्हीं से तो युद्ध है। वह भी हम ही। तभी तो जीतना मुश्किल है, अपनी ही बुराईयों से।

    महाभारत सब का अपना ही है। कोई दूसरा लड़ ही नहीं सकता। अगर गीता पढ़ो तो सब से पहला शब्द है – धर्मक्षेत्रे, और फिर दूसरा शब्द शब्द है – कुरुक्षेत्रे; हमारा कर्मस्थान (कुरु – कृ), हमारा शरीर, हमारी आत्मा, हमारा जीवन, जो कि धर्मक्षेत्र है, वह अधर्म के हाथ में चला गया है।

    छोड़ो, बेकार में ही लिख रहा हूँ। आप का कोई जवाब तो कभी आता नहीं। समझ ही नहीं आता कि बात किसी काम की थी, या यूं ही मेरा दिल रखने को पोस्ट पर डाल दी। वैसे भी यहाँ कविता पर तो लिखने को कुछ है नहीं। कुल दो पंक्तियों की कविता है। और दो पंक्तियाँ ऐसी हैं, जिन पर लिखने बैठ गये तो बीस पन्ने भी कम पड़ जायेंगे।
    ख़ुश रहिये। लिखती रहिये॥

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