केवल मस्तक पर ही नहीं, हृदय में धारण कर। पहले हृदय में, फिर मस्तक पर, यानि ध्यान। हृदय में राम नाम न होगा, और ध्यान करने बैठ गये, तो ध्यान भटकेगा। शंका उत्पन्न होगी। मगर जो हृदय में श्री राम का वास हो गया, तो बस राम नाम। और कुछ नहीं। वही सत्य है। फिर सत्कर्म कुकर्म सोचना ही क्या। जब हृदय में सत्य है, तो मस्तक पर भी सत्य, फिर जो कर्म होगा वह भी सत्य। कुकर्म होगा ही नहीं।
ईश्वर शक्ति दे। आज अचानक राम नाम का ध्यान कैसे आ गया। आप की पिछली पोस्ट भी पढ़ीं थीं। कुछ लिखा नहीं था। दोबारा पढ़ूँगा तब लिखूंगा अगर कुछ बन पड़ा। ख़ुश रहें। लिखती रहें॥
शम्स साहब राम नवमी थी । मन में राम नाम प्रतिध्वनित हो रहा था । छोटा सा नाम सो कम शब्दों में बात कहनी चाही ।शायद वास्तव में शब्द कम पड़ गए । बात पूरी नहीं हुई ।
आपकी हर बात सोलह आने सच है । अच्छा हुआ आपने व्यक्त कर दिया जो कहना अव्यक्त रह गया था । शुक्रिया ।
केवल मस्तक पर ही नहीं, हृदय में धारण कर। पहले हृदय में, फिर मस्तक पर, यानि ध्यान। हृदय में राम नाम न होगा, और ध्यान करने बैठ गये, तो ध्यान भटकेगा। शंका उत्पन्न होगी। मगर जो हृदय में श्री राम का वास हो गया, तो बस राम नाम। और कुछ नहीं। वही सत्य है। फिर सत्कर्म कुकर्म सोचना ही क्या। जब हृदय में सत्य है, तो मस्तक पर भी सत्य, फिर जो कर्म होगा वह भी सत्य। कुकर्म होगा ही नहीं।
जवाब देंहटाएंईश्वर शक्ति दे। आज अचानक राम नाम का ध्यान कैसे आ गया। आप की पिछली पोस्ट भी पढ़ीं थीं। कुछ लिखा नहीं था। दोबारा पढ़ूँगा तब लिखूंगा अगर कुछ बन पड़ा। ख़ुश रहें। लिखती रहें॥
शम्स साहब राम नवमी थी । मन में राम नाम प्रतिध्वनित हो रहा था । छोटा सा नाम सो कम शब्दों में बात कहनी चाही ।शायद वास्तव में शब्द कम पड़ गए । बात पूरी नहीं हुई ।
हटाएंआपकी हर बात सोलह आने सच है । अच्छा हुआ आपने व्यक्त कर दिया जो कहना अव्यक्त रह गया था । शुक्रिया ।