शनिवार, 1 जून 2013

नुक्स




हम 
यानी जनता जनार्दन .
दिन पर दिन 
दर्शक बने 
बिना टिकट के 
देखते हैं तमाशा 
राजनीति का .

राजनीति जो 
सत्ता के गलियारों 
में घूम-फिर कर 
अब सेंध मार कर 
घुस बैठी है 
घर-घर में ,
और हथिया लिया है 
जीवन का हर प्रसंग .

राजनीति जो 
भ्रष्टाचार की  
माला जपती है .
राजनीति जो 
अब कोई नीति नहीं 
केवल अनीति है .

और जनता जनार्दन का क्या ?
उसकी भूमिका है क्या ?
उसकी प्रतिक्रिया है क्या ?
उसकी जीवनचर्या है क्या ?

जनता जनार्दन ..
पिले हुए हैं , कोल्हू के बैल की तरह .
पिस रहे हैं , आपाधापी की चक्की में घुन की तरह .
मूक दर्शक हैं ,
चौराहों पर पथराई 
महापुरुषों की मूर्तियों की तरह .
क्या कहें ..
कुछ कर नहीं पाते .
रह जाते हैं 
पिंजरे में पर फड़फड़ाते, चोंच मारते 
पंछी की तरह .

और ईमान की बोली 
हर गली में 
लग रही है .
बड़ा आदमी बड़ा ,
छोटा आदमी छोटा ,
जिसका हाथ जहाँ तक पहुंचा 
अपना हाथ 
साफ़ कर रहा है .
ईमानदारी के उसूल 
अब कोई नहीं हैं .
हाँ तरीके हैं 
बहुत सारे ,
ईमानदारी जताने के ..
काम निकालने के .

इसी व्यावहारिकता के मंच पर 
एक आदमी अकेला खड़ा 
अपनी बात कह रहा है 
मतलब कुछ बक रहा है ,
उसका किस्सा कोई नहीं सुनता .
बड़ी समझदार है ये जनता !

इस आदमी को आप-हम 
सब पहचानते हैं .
इस नस्ल के आदमी अब 
बहुत कम तादाद में 
पाए जाते हैं .
पर कमबख्त !
बाज नहीं आते हैं !
इक्का-दुक्का हर जगह 
मिल ही जाते हैं .

इस आदमी की क्या है लाचारी ?
जो पकड़ कर बैठा है ईमानदारी !
सुनिए श्रीमान ! इस आदमी में ही नुक्स है !
जी तोड़ कर जब तक काम न करे 
इसे चैन नहीं पड़ता !
हर काम को इस तरह है करता 
जैसे जहाँपनाह ! ताजमहल कर रहा हो खड़ा !
इसके साथ एक और बड़ी दिक्कत है !
सीधे , सच्चे , साधारण आदमी का 
ये बड़ा हमदर्द है !   
उसका बेड़ा पार लगायेगा !
उसके बिगड़े काम बनायेगा !

जब सारे शहर की बत्ती गुल हो 
तब इसे देखो !
अपनी मोमबत्ती के उजाले में 
चुपचाप अपना काम करता है .
इसी आदमी के चलते 
दुनिया का काम चलता है .





2 टिप्‍पणियां:

  1. क्या लिखें भाई? कल से यही सोच रहे हैं हम। राजनीति तो अपना विषय है नहीं, सो आधी कविता यूं ही निकल गई। जो बची आधी, वो अपने को ही दर्पण दिखा रही है। अपनी व्यथा को क्या पढ़ें। दुःख ही होता है। लोग भला ऐसी यथार्थवादी कविता लिख कैसे लेते हैं। अरे ज़रूरत ही क्या है। चिकनी चमेली लिखो, शीला की जवानी लिखो, यहाँ डेढ़ सौ आ जायेंगे कमेन्ट करने वाले। दुनिया को दर्पण दिखाओ, तो काहे को कोई आयेगा वाह वाह करने।

    आप लिखे रहो जी अपने मन की। हम हैं न वाह वाह करने को। आठ घंटे बिजली कटने के बाद इनवर्टर भी बैठ चुका था। अगर बिना बत्ती के कंप्यूटर चल गया होता, तो हम भी मोमबत्ती में ही कमेन्ट लिख रहे होते।

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