शनिवार, 7 दिसंबर 2024

तासीर


हमारी समझ के बीच

ऊँचे पहाङ हैं..

समझना मुश्किल है

उस पार की समझ ।

उस तरफ़ कितनी

कङी धूप है,

कितनी छाँव है घनी ।

बंजर है भूमि,

या है हरियाली ।

कोई नदी

है भी या नहीं । 

फसल कौनसी

उगाई जाती,

कैसी होती है 

रहने की झोंपङी ।

बच्चे कौन से 

खेलते हैं खेल,

बगीचों में अक्सर

खिलते हैं कौनसे फूल ..

पर कभी-कभी 

पवन बहती है जब..

लाती है अपने साथ

सुगंध की सौगात..

और कभी-कभी

हवाओं में तैरती

किसी के गाने की 

सोज़ भरी आवाज़ ।

उस ओर जाए बिना

हम जानते हैं उन्हें ।

देखने और छूने की 

कोई ज़रुरत नहीं ।

किसी की पहचान

होती है उसकी सुगंध, 

कह देते हैं सब कुछ

उसके गाने के सुर ।




सोमवार, 2 दिसंबर 2024

भावुक मन, भावमय रहना ।



भावुक मन, 

भावमय रहना ।

मर्म समझ

अपना मत देना ।


दुखती रग पर

संभल-संभल कर

शब्दों के फाहे रखना ।


अव्यक्त व्यथा की

थाह पा कर,

मौन से मान रखना ।


क्लांत पथिक की

कठिन राह पर

शीतल जल कूप बनना ।


अश्रु जल का खारापन 

अंजुरी में भर कर,

गंगाजल सम पान करना ।


कांटों भरी 

जीवन बगिया में 

गुलाब की सुगंध बन बसना । 


सबके मन पर भार बहुत 

तुम भाव गहन कर

मन-भुवन, भारहीन कर देना । 


बुधवार, 20 नवंबर 2024

वोट डालें महानुभाव !


हे लोकतंत्र के उपासक !

वोट नहीं डाला ?

क्यों नहीं डाला ??


तुम कहते हो,

नकली है मतदान 

चुनाव में हेरफेर है !


मित्र, हेरफेर है अगर,

तो होना चाहिए सतर्क 

और भी अधिक !


वोट का अपने

करो सदुपयोग,

मत जाने दो व्यर्थ !


सुनो श्रीमान !

वोट का अपने

रखो मान !


राजनीति के उलटफेर

होते हैं सर्वत्र

क्या देश क्या घर !


घर छोङ देते हो क्या ?

भाग्य भरोसे ?

यदि नहीं ..तो देव जागो !


चेतना के कपाट खोलो !

अकर्मण्यता छोङो !

अवसरवादी ही बन लो !


हे कुंभकर्ण ! आंखें खोलो !

वोट देकर भविष्य चुनो !

पूरे हक़ से हालात बदलो !