शनिवार, 2 नवंबर 2024

मिट्टी का दिया


रात्रि का निविङ अंधकार 

उस पर अमावस की रात

साधक हुए ध्यान में मग्न 

शेष सबके ह्रदय थे खिन्न 


ऐसे में एक मिट्टी का दिया

जिसके तले रहता अंधेरा

उसने ही बीङा उठा लिया

अंधियारी से लोहा लेने का


रात भर पहरा देता रहता

जागते रहो पुकारता जाता

घोर निशा में अलख जगाता

महीन लौ से मशाल जलाता


पहले साहस की बाती बटता

गाढ़े स्नेहिल अभ्यंग में पगता

चिंतन की अडिग लौ बालता

गहन तम में निर्भय टिमटिमाता


सामर्थ्यवान जब हार मान लेता

कौशल तज हथियार डाल देता

तब धनुष तान श्री राम बन जाता

छोटा-सा निरुपाय मिट्टी का दिया


शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2024

को जागरी ?


नभ के भाल पर

जब हुआ उदय

दूधिया चंद्रमा,

झरने लगी चाँदनी

शीतल उजियारी

छल-छल गगरी !

को जागरी ?


जो जाग रहा था,

मनसा वाचा कर्मणा,

उसने पाई चाँदनी 

भर-भर अंजुरी,

जगत हुआ तृप्त 

बूँद-बूँद अमृत

जब बरसा धरा पर ।


माँ लक्ष्मी की श्री

चाँदनी में घुली

ह्रदय में समाई ।

मानस हंस धवल

चुगते मोती उज्जवल 

तरल अनुभूति ,

धीर धरती धरित्री ।


मुदित हुआ मन

वृंदावन में बजी वंशी

मृदंग पर पङी थाप

छन छन नूपुर ध्वनि 

सुन जागी रासस्थली

जुगल जोङी संग सखी

आह्लादित रास रस पगी ।


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छवि साभार : जयति गोस्वामी