रात्रि का निविङ अंधकार
उस पर अमावस की रात
साधक हुए ध्यान में मग्न
शेष सबके ह्रदय थे खिन्न
ऐसे में एक मिट्टी का दिया
जिसके तले रहता अंधेरा
उसने ही बीङा उठा लिया
अंधियारी से लोहा लेने का
रात भर पहरा देता रहता
जागते रहो पुकारता जाता
घोर निशा में अलख जगाता
महीन लौ से मशाल जलाता
पहले साहस की बाती बटता
गाढ़े स्नेहिल अभ्यंग में पगता
चिंतन की अडिग लौ बालता
गहन तम में निर्भय टिमटिमाता
सामर्थ्यवान जब हार मान लेता
कौशल तज हथियार डाल देता
तब धनुष तान श्री राम बन जाता
छोटा-सा निरुपाय मिट्टी का दिया