सुख बरसता है
वर्षा की तरह ।
भूमि में समा जाता है,
पोर पोर नम करता
धरा को करता तृप्त!
धौंकनी में फूँकता प्राण ।
संजीवनी औषधि समान ।
दुख पसर जाता है ।
शिराओं में पैठता,
पोर पोर पिराता,
बना रहता है ..
टीस की तरह
नहीं होता सहन,
प्रसव की पीङा
समान छटपटाता है ।
पर रहने नहीं देता बंजर,
दुख करता है सृजन ।
सुख पोसता है ।
दुख जगाता है ।
दुख और सुख का
जन्म से ही नाता है ।
नमस्ते namaste
शब्दों में बुने भाव भले लगते हैं । स्याही में घुले संकल्प बल देते हैं ।
सोमवार, 8 सितंबर 2025
दुख-सुख का नाता
गुरुवार, 4 सितंबर 2025
भक्त और भगवान
छोटा तन का आकारएक कर में लिए कमंडलवपु वेश धर छलने आएद्वार पर वामन भगवानलेने राजा बलि से दान ।राजा बलि अति विनम्रदान सदा देने को तत्पर,अश्वमेध यज्ञ का यजमानसत्ता ने कर दिया भ्रमित,जो माँगें देने को तैयार।गुरु ने किया सावधान परभक्त का दृढ़ था संकल्प ।तेजस्वी विप्र ने माँगा तत्क्षणबस तीन पग भूमि का दान ।बलि ने सहर्ष किया स्वीकार ।नारायण ही थे वामन भगवान!एक पग में नापा समस्त भूलोकदूजे पग में समेटा सकल ब्रम्हांड..अब तीसरा पग रखूँ कहाँ राजन ?बलि चरणों में हुआ नतमस्तक,कहा, मेरे शीश पर करुणानिधानअपने चरणकमल को दें विश्राम ।जो जीता था, सब कुछ गया हार,शरणागत को प्रभु चरण शिरोधार्य !राजा बलि ने गहे नारायण के चरण ।चरण वरण भक्त के जीवन का सार ।
मंगलवार, 2 सितंबर 2025
चिट्ठी लिखते रहना
चिट्ठी लिखते रहना
चाहे जहाँ भी रहना
अपने हाथों से लिखना
कुशल-क्षेम कह देना
इतना तो समय मिलेगा
बस दो शब्द लिख देना
चिट्ठी पर पता तुम्हारा
दूरी कुछ कम कर देगा
लिखावट देखते रहना
मिलने जैसा ही होगा
चिट्ठी का आते रहना
उम्मीद से बँधा धागा
दूर कहीं कोई है अपना
जो अब तक नहीं भूला
थोङे को बहुत समझना
अनकहा भी पढ़ लेना
लिक्खे को संवाद जानना
और चिट्ठी लिखते रहना
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