गुरुवार, 8 सितंबर 2022

छायादार रास्ते

तुमने वो रास्ते देखे हैं ..
जिनके किनारे - किनारे 
घने पेङ होते हैं ?
बीच में होता है रास्ता 
माँग जैसा ।
इस रास्ते के बीचों-बीच 
खङे होकर ऊपर देखो
तो ऐसा लगता है,
मानो दोनों वृक्षों ने
थाम लिया हो
एक-दूसरे को,
गले मिल रहे हों 
दोस्त, हमख़याल ।
जैसे बचपन में 
ठीक इसी तरह
हाथ पकङ कर
पुल बनाया जाता था,
नीचे से रेल गुज़रती थी,
कमीज़, फ़्राक पकङे हुए 
सरकते रेल के डिब्बे बने
सीटी बजाते छुक-छुक करते !
कभी लगता है घर के बङे
झुक कर हवा झलते हुए
दे रहे हों आशीर्वाद ।
अकस्मात ऐसा कोई रास्ता 
चलते-चलते मिल जाए तुम्हें 
तो ज़रूर बताना ।
घर के बच्चों को मुझे 
ऐसे रास्तों पर है चलाना ।
ताकि ऐसे रास्तों को बच्चे 
बचा सकें अपने हाथों से,
घनी छाँव की छत्रछाया, 
ठंडी हवा के झोंके और
अदृश्य चिङिया का चहचहाना ।


गुरुवार, 21 जुलाई 2022

फूल खिलते रहेंगे


हम फूल हैं ।
तंग घरों की 
बाल्कनीनुमा
खिङकियों में बसे ।

सलाखों से घिरे हैं 
तो क्या हुआ ?
हर हाल में, हर रंग में, 
खिल रहे हैं तबीयत से ।

अपनी मर्ज़ी से 
ना सही, 
गमलों में ही
जी रहे हैं 
ज़िन्दादिली से !

आख़िर फूल हैं !
मिट्टी में जङें हैं ।
धूप में छने हैं ।
नज़ाकत से पले हैं !
खुश्बू ही तो हैं !

खुश्बू ही तो हैं !
हवाओं में घुल जाएंगे ।
ज़मीं पर बिखर जाएंगे ।
ज़हन में उतर जाएंगे ।

खुश्बू ही तो हैं ।
खयालात में ढल जाएंगे ।
और फिर खिलेंगे ।
आख़िर हम फूल हैं ।
खिलते रहेंगे ।

मंगलवार, 12 जुलाई 2022

गुरु दक्षिणा


सूर्य रश्मि
आत्मसात कर
फूल खिलते हैं ज्यों,
खिल कर जगत को
खुशबू देते हैं ज्यों ।

सूर्य का प्रखर तेज
अपने अंतर में रोप कर
शीतल भीनी चांदनी ज्यों
चंद्रमा देता है भुवन को ।

सूर्य की भीष्म तपस्या
एकनिष्ठ सेवा
और जीवन यज्ञ देख कर,
छोटा-सा मिट्टी का दीपक
पाता है संबल ।
करता है संकल्प ।
गहन अंधकार को ललकार
अडिग लौ
बन जाता है ज्यों ।

इसी तरह गुरु की वंदना कर
समर्पित की जाती हैं गुरु दक्षिणा ।
इसी तरह दमकती है शिष्य के
व्यक्तित्व में गुरु शिक्षा की आभा ।

कृष्ण ने अर्जुन को दी थी यही शिक्षा ।
अपने जीवन को बना दो कर्म की गीता ।

सुपात्र बनाने के लिए गुरु देते हैं दीक्षा ।
सीख कर सिखाना ही उचित गुरु दक्षिणा ।