जाने कब से,
हम मिले नहीं ।
एक - दूसरे के बारे में,
हम कुछ जानते नहीं ।
फिर भी,
हम दोस्त हैं ।
आप भी हमारे हालात पहचानिये,
हमारी मसरूफ़ियत को जानिये,
देखिये, इस बात को समझिये . .
हम दोस्तों की सारी ख़बर रखते हैं ।
फ़ेसबुक की टाइमलाइन पर
नज़र रखते हैं !
आप ख़ुद देख लीजिये !
दोस्तों की हर पोस्ट को
लाइक करते हैं !
हर फोटो को शेयर करते हैं,
ट्विटर पर फ़ॉलो करते हैं !
इंस्टाग्राम पर दीदार करते हैं . .
पर अब, ये सब फ़िज़ूल की बातें हैं,
जो आप कहते हैं . .
क्या हम अपने दोस्त की
लिखावट पहचानते हैं ?
क्या हम अपने दोस्त की
दुखती रग चीन्हते हैं ?
इन सवालों का जवाब . .
"नहीं" है ।
इन जज़्बाती बातों के लिए वक़्त
नहीं है ।
फिर भी,
हम दोस्त हैं ।
दोस्तों की लम्बी
फ़ेहरिस्त है ।
आप चाहें तो हम
गिनवा सकते हैं ।
मजाल है जो कभी
उनकी बर्थडे पर
मैसेज ना किया हो !
एनिवर्सरी पर
विश न किया हो !
हाँ इतना तो वक़्त नहीं,
जो घर आना - जाना हो ।
कभी साथ में सैर पर निकला जाये ।
जब बिना पूछे ही
मन की बातें
ज़बान पर आ जायें ।
या कभी यूँ ही बरामदे में
चुपचाप बैठा जाये,
समय की चहलकदमी को
कौतुक से देखा जाये ।
कभी झकझोर के
अपने अज़ीज़ को
पूछा जाये,
यार बता !
आख़िर बात क्या है ?
हाँ ठीक है ।
वो बात ही कुछ और होती
अगर कभी कभी
हम गले मिलते ।
हाथ मिलाते
तो जान पाते . .
दोस्त की हथेली
ठंडी क्यों है,
पकड़ ढ़ीली क्यों है . .
या तसल्ली होती -
गर्मजोशी से हाथ मिला के
दिल के बंद पोर खुल जाते !
पर ऐसा है नहीं ।
अंदरुनी दूरियाँ
अब कोई
नापता नहीं . .
ऐसा है नहीं . .
फिर भी,
हम दोस्त हैं ।