सोमवार, 23 दिसंबर 2013

क्या हुआ ?




क्या हुआ ?

उसने पूछा ।

जाने क्या देखा  . . 
मेरा उदास चेहरा ?
या देखी परेशानी
मेरी पेशानी पर ?
या पढ़ ली बेचैनी 
बातों में मेरी ?  

मेरे लिए बड़ी बात है ये 
कि उसने पूछा तो सही ।
आप दिनों - दिन घुटते रहते हैं,
मन ही मन छटपटाते रहते हैं,
और किसी का ध्यान तक जाता नहीं ।

और फिर अचानक एक दिन 
कोई पूछ बैठता है -
क्या हुआ ?

जैसे चोट पर कोई रख दे, 
रुई का फाहा ।
जैसे दिल पर से उतर जाये, 
बोझ मनों का ।

केवल दो शब्द  . . 
क्या हुआ ?

और हम किसी बेहद अपने से भी
पूछना भूल जाते हैं,
या सोच ही नहीं पाते हैं,
कितना ज़रूरी है ये पूछना भी ।

कहने को छोटी - सी बात है,
पर किसी के लिए बहुत बड़ी राहत है ।

पूछ कर देखो तो सही ।
कभी न कभी तुम्हें भी,
ज़रुरत तो पड़ेगी ही ।

दौड़ते - भागते जीना,
कुछ देर रोक कर,
ज़रूरी है ठहर कर पूछना  . . 

क्या हुआ ?


                  

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

धन्यवाद सचिन




समूची आबोहवा 
धुली - धुली सी,
बात चल रही है 
सचिन की ।

सचिन का संन्यास लेना,
हज़ारों दिलों का टूटना ।
करोड़ों दिलों पर हुक़ूमत करना,
मुस्कुराती आँखों का नम होना ।

जब सचिन ने शुरू किया 
धन्यवाद कहना,
मंत्रमुग्ध सुन रहा था 
स्टेडियम का कोना - कोना ।

तुम्हारे चेहरे पर वही सादगी, 
वही सरल मुस्कान ।          
तुम्हारे शब्दों में भी वही, 
ऊँचे नभ की उड़ान ।
शायद ही बचा कोई ऐसा कीर्तिमान,
जिस पर ना लिखा हो तुम्हारा नाम ।

बहुत कम दिन ऐसे होते हैं,
जब आशाओं के ताल भरे होते हैं ।
सारी बुरी ख़बरों पर 
शुभ संवाद हावी होते हैं ।
ऐसे ही थे ये दो - तीन दिन,
जब हर तरफ हो रही थी सिर्फ़ 
खेल, शुद्ध खेल की बात ।
तुम्हारे 
चौबीस साल के 
बेदाग़ सफ़र की बात ।

जैसे साफ़, सफ़ेद कागज़ पर उतारे,  
मोती जैसे जज़्बात ।
जैसे तारों के शामियाने के नीचे, 
चैन की साँस लेती रात ।
कुछ ऐसा सुक़ून था 
फ़िज़ा में,
इधर कुछ दिन 
तुम्हारे बहाने  . . 

धन्यवाद सचिन ।

                  

सोमवार, 4 नवंबर 2013

आकाशदीप



ये लो मित्रों !
दिवाली बस आ ही गयी समझो !
आज धनतेरस है ।
सड़कों पर भीड़ का कोरस है,
                          हर तरफ़ ।   
और रोशनी का मेला है ,
                 चारों तरफ़ ।  

ये मुम्बई की दिवाली है ।
फुटपाथ पर लगे हैं फूलों के ढ़ेर ।
पीले और नारंगी गेंदा कई - कई सेर ।
रंगोली का साज़ो - सामान , खील बताशे ।
मिटटी के लक्ष्मी - गणेश, हटरी और अनगिनत दिये ।
रंग - बिरंगी कंदीलों की लगी है कतार ।
बिजली की झालरों से सजा है बाज़ार ।

हलवाई की दुकानों में 
चिने हुए मिठाई के डिब्बे ।
हर घर की बाल्कनी में ,
खिड़की में कंदीलें ।
पेड़ों के बीच झूलती कंदीलें ।
जिधर देखो उस तरफ़ 
बेशुमार कंदीलें  . . 
चालों में  . .  फ्लैटों में  . . 
झोंपड़पट्टी में  . .              
कंदीलें ही कंदीलें ।
चमचमाती दुकानों में 
तरह - तरह के पटाखे ।
दिवाली के मेले में 
किसिम - किसिम के तमाशे ।

हर तरफ़, 
खुशहाली की लहर ।
दुकानों के बाहर ,
घरों की ड्योढ़ी पर 
रखा है दिया ,
इस दिवाली का पहला दिया ।
दिया है तो रोशन है हर दिशा ।      

दिया है तो दिये तले 
अँधेरा भी होगा ही ,
कहीं न कहीं ।
काश कि इन अँधेरे कोनों तक 
हर सूने मन और आँगन तक 
पहुंचे रोशनी का पैग़ाम ।
दिये जलते रहें 
हर घर की दहलीज़ पर ,
आलों में ,
छज्जों पर  . . 
और सबके ज़हन में 
जगमगाते रहें 
आकाशदीप ।