शनिवार, 8 जून 2013

सबसे बड़ी खबर





जीवन की उठा-पटक 
एकरस .
हलचल नहीं दूर तक .
नीरस .
हर दिन अपने को दोहराता हुआ .
वही पुराने पाठ का रट्टा लगता हुआ .
ऐसे में हम सभी 
ढूंढते है सनसनी 
टीवी रिपोर्ट में ..
अखबार में छपी 
वारदात में ..
जीने का रोमांच .
चालू फ़िल्मी गीतों में 
इस पल का रोमांस .
क्या ज़रा भी नहीं 
हमारी अपनी ज़िन्दगी 
दिलचस्प ?
हमारी अपनी खबर 
भी तो बन सकती है 
इस घंटे की 
सबसे बड़ी खबर !




शनिवार, 1 जून 2013

नुक्स




हम 
यानी जनता जनार्दन .
दिन पर दिन 
दर्शक बने 
बिना टिकट के 
देखते हैं तमाशा 
राजनीति का .

राजनीति जो 
सत्ता के गलियारों 
में घूम-फिर कर 
अब सेंध मार कर 
घुस बैठी है 
घर-घर में ,
और हथिया लिया है 
जीवन का हर प्रसंग .

राजनीति जो 
भ्रष्टाचार की  
माला जपती है .
राजनीति जो 
अब कोई नीति नहीं 
केवल अनीति है .

और जनता जनार्दन का क्या ?
उसकी भूमिका है क्या ?
उसकी प्रतिक्रिया है क्या ?
उसकी जीवनचर्या है क्या ?

जनता जनार्दन ..
पिले हुए हैं , कोल्हू के बैल की तरह .
पिस रहे हैं , आपाधापी की चक्की में घुन की तरह .
मूक दर्शक हैं ,
चौराहों पर पथराई 
महापुरुषों की मूर्तियों की तरह .
क्या कहें ..
कुछ कर नहीं पाते .
रह जाते हैं 
पिंजरे में पर फड़फड़ाते, चोंच मारते 
पंछी की तरह .

और ईमान की बोली 
हर गली में 
लग रही है .
बड़ा आदमी बड़ा ,
छोटा आदमी छोटा ,
जिसका हाथ जहाँ तक पहुंचा 
अपना हाथ 
साफ़ कर रहा है .
ईमानदारी के उसूल 
अब कोई नहीं हैं .
हाँ तरीके हैं 
बहुत सारे ,
ईमानदारी जताने के ..
काम निकालने के .

इसी व्यावहारिकता के मंच पर 
एक आदमी अकेला खड़ा 
अपनी बात कह रहा है 
मतलब कुछ बक रहा है ,
उसका किस्सा कोई नहीं सुनता .
बड़ी समझदार है ये जनता !

इस आदमी को आप-हम 
सब पहचानते हैं .
इस नस्ल के आदमी अब 
बहुत कम तादाद में 
पाए जाते हैं .
पर कमबख्त !
बाज नहीं आते हैं !
इक्का-दुक्का हर जगह 
मिल ही जाते हैं .

इस आदमी की क्या है लाचारी ?
जो पकड़ कर बैठा है ईमानदारी !
सुनिए श्रीमान ! इस आदमी में ही नुक्स है !
जी तोड़ कर जब तक काम न करे 
इसे चैन नहीं पड़ता !
हर काम को इस तरह है करता 
जैसे जहाँपनाह ! ताजमहल कर रहा हो खड़ा !
इसके साथ एक और बड़ी दिक्कत है !
सीधे , सच्चे , साधारण आदमी का 
ये बड़ा हमदर्द है !   
उसका बेड़ा पार लगायेगा !
उसके बिगड़े काम बनायेगा !

जब सारे शहर की बत्ती गुल हो 
तब इसे देखो !
अपनी मोमबत्ती के उजाले में 
चुपचाप अपना काम करता है .
इसी आदमी के चलते 
दुनिया का काम चलता है .





शनिवार, 25 मई 2013

अकेलापन




फिर वही .

फिर वही 
सूनापन .

फिर वही 
सड़क पर आते-जाते 
लोगों को 
देखना 
एकटक .
फिर वही 
घड़ी में
बार-बार 
देखना 
समय .
फिर वही 
डोर बेल के 
बजने का 
इंतज़ार .
फिर वही 
मोबाइल पर 
चेक करना 
मिस्ड कॉल .

फिर वही 
पलंग पर लेटे-लेटे 
पंखे को 
देखना .

फिर वही 
फ़ेसबुक पर 
दोस्त ढूँढना .
अपनी पोस्ट को 
कितनों ने लाइक किया , 
अधीर होकर गिनना .
फिर वही 
जाने - अनजाने लोगों के 
ट्वीट्स में 
संवाद तलाशना .

फिर वही 
टेबल लैंप का स्विच 
बार - बार ऑन करना 
ऑफ़ करना .
सोचने के लिए 
कोई बात 
सोचना .

फिर वही 
डेली सोप में 
मन लगाना .
धारावाहिक के 
पात्रों में 
अपनापन खोजना .
उनकी कहानी में 
डूबना - उतरना ,
उन्ही के बारे में 
अक्सर सोचना .
फिर वही 
रेडिओ के 
चैनल बदलते रहना .
फिर वही 
सच्ची - झूठी 
उम्मीद बुनना .

फिर वही 
हर बीती बात की 
जुगाली करना .
फिर वही 
वक़्त की दस्तक 
सुन कर 
चौंकना .
फिर वही 
दिन - रात को 
खालीपन के 
धागे से सीना .
फिर वही बेचैनी ,
अनमनापन .

फिर वही 
अकेलापन .