शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

गहरा नीला


घास पर लेट कर 
गुनगुनी धूप में 
आकाश को देखना..
टकटकी लगा कर..
और बताना, 
कितना नीला
और गहरा 
दिखाई देता है..
आसमाँ.

 

रविवार, 22 अप्रैल 2012

कहने को बहुत कुछ पास है मेरे



ऐसा नहीं है कि
कुछ कहने को
मेरे पास नहीं ..
या शब्द
मेरे पास नहीं..
तब भी थे,
अब भी हैं कई
बातें,
जो कहने लायक हैं, बल्कि
दिलचस्प कथानक हैं..और
जायज़ हैं.

पर.. बात अब
खत्म हो जाती है
कहने से पहले,
चुप-सी लग जाती है, कोई
लक्ष्मण रेखा खिंची हो जैसे.
एक सन्नाटा भीतर
पसर गया हो जैसे.

कोई तो आकर झिंझोङे,
मन की साँकल खोले,
बंद खिङकी-दरवाज़े खोले,
कोई तो कुछ ऐसा बोले
जो बोलने का मन करे..

बहती नदी हो जैसे,
मंदिर की घंटियाँ हो जैसे,
बाँसुरी की तान हो जैसे,
बच्चों की मीठी बोली हो जैसे..
बेहिचक बेफ़िक्र
निश्छल निश्चिन्त निर्द्वंद
संवाद हो.

कहने को बहुत कुछ
पास है मेरे.



शनिवार, 14 अप्रैल 2012

लतीफ़ा


समझ में आया तो
दिल खोल कर हँसा.
आखिर लतीफ़ा क्या था
अपना ही किस्सा था
जीने का हिस्सा था ..
समझ लीजिये !

वाकया समझ कर सुन लो,
लतीफ़ा समझ कर हँस लो..
तो जीना आसान हो जाये,
खुश रहने का सबब बन जाये !