सोमवार, 15 जून 2009

झरता रहा हारसिंगार

झरता रहा हारसिंगार

कहा तो कुछ भी नहीं ऐसा
आपने
जो बदल दे स्वाभाव समय का
हो ऐसा अद्भुत विन्यास शब्दों का
नहीं
ऐसा तो कुछ भी नहीं कहा
बस
देख कर अनदेखा नहीं किया,
बस देखा
और सहज ही
अभिवादन किया
फिर कहा
नाम भी तो नहीं था पता,
पहचानता कैसे कि
किसी का परिचय दहलीज़ पर
बाट जोहता खड़ा है ,
कोई बात साथ चल रही है
एक संवाद बुन रही है

बस इतना ही कहा
और हंस दिए धीमे से
सुबह की धूप सी हँसी

आसपास खिंच गई
लक्ष्मणरेखा
सरल और निश्छल दृष्टि की

अनायास ही
जाने क्या हुआ,
कई दिनों का इकट्ठा हुआ
दुःख
प्रतिकार
जो चोट सहते-सहते
पथरा गया था,
उस पत्थर से
सोता फूट पड़ा
आंखों से
गंगा-यमुना सा जल बह चला
सूर्य रश्मि की ऊष्मा ले
पावन हो गया ,

मन हल्का हो गया
फूल सा ,

हारसिंगार झरता रहा

शुक्रवार, 12 जून 2009

जब तुम पूछोगे अपने सवाल


आज
या तो बारिश आयेगी
भीतर तक भिगो कर जाएगी
आँखें नम कर जाएगी,
या फिर
आयेगा ठंडी हवा का झोंका
हाथ मिलाएगा
और पूछेगा
मन के मौसम का हाल

और जब तुम पूछोगे अपने सवाल
तब कंधे पर रखेगा हाथ
और समझाएगा
कि तुम्हें है इंतज़ार
जिस फुहार का
हो सकता है
रास्ते में रुकी हो और,
और बूँदें समेटती हो
पानी की तंगी वाले दिनों के लिए

पर देर-सबेर
ठंडी फुहार आयेगी
तुम्हारी पीठ थपथपायेगी -
सुनो ! धूप-छांव दोनों के मज़े लेना
इसी तरह हर मौसम को भरपूर जीना