फिर वही .
फिर वही
सूनापन .
फिर वही
सड़क पर आते-जाते
लोगों को
देखना
एकटक .
फिर वही
घड़ी में
बार-बार
देखना
समय .
फिर वही
डोर बेल के
बजने का
इंतज़ार .
फिर वही
मोबाइल पर
चेक करना
मिस्ड कॉल .
फिर वही
पलंग पर लेटे-लेटे
पंखे को
देखना .
फिर वही
फ़ेसबुक पर
दोस्त ढूँढना .
अपनी पोस्ट को
कितनों ने लाइक किया ,
अधीर होकर गिनना .
फिर वही
जाने - अनजाने लोगों के
ट्वीट्स में
संवाद तलाशना .
फिर वही
टेबल लैंप का स्विच
बार - बार ऑन करना
ऑफ़ करना .
सोचने के लिए
कोई बात
सोचना .
फिर वही
डेली सोप में
मन लगाना .
धारावाहिक के
पात्रों में
अपनापन खोजना .
उनकी कहानी में
डूबना - उतरना ,
उन्ही के बारे में
अक्सर सोचना .
फिर वही
रेडिओ के
चैनल बदलते रहना .
फिर वही
सच्ची - झूठी
उम्मीद बुनना .
फिर वही
हर बीती बात की
जुगाली करना .
फिर वही
वक़्त की दस्तक
सुन कर
चौंकना .
फिर वही
दिन - रात को
खालीपन के
धागे से सीना .
फिर वही बेचैनी ,
अनमनापन .
फिर वही
अकेलापन .