ये लो मित्रों !
दिवाली बस आ ही गयी समझो !
आज धनतेरस है ।
सड़कों पर भीड़ का कोरस है,
हर तरफ़ ।
और रोशनी का मेला है ,
चारों तरफ़ ।
ये मुम्बई की दिवाली है ।
फुटपाथ पर लगे हैं फूलों के ढ़ेर ।
पीले और नारंगी गेंदा कई - कई सेर ।
रंगोली का साज़ो - सामान , खील बताशे ।
मिटटी के लक्ष्मी - गणेश, हटरी और अनगिनत दिये ।
रंग - बिरंगी कंदीलों की लगी है कतार ।
बिजली की झालरों से सजा है बाज़ार ।
हलवाई की दुकानों में
चिने हुए मिठाई के डिब्बे ।
हर घर की बाल्कनी में ,
खिड़की में कंदीलें ।
पेड़ों के बीच झूलती कंदीलें ।
जिधर देखो उस तरफ़
बेशुमार कंदीलें . .
चालों में . . फ्लैटों में . .
झोंपड़पट्टी में . .
कंदीलें ही कंदीलें ।
चमचमाती दुकानों में
तरह - तरह के पटाखे ।
दिवाली के मेले में
किसिम - किसिम के तमाशे ।
हर तरफ़,
खुशहाली की लहर ।
दुकानों के बाहर ,
घरों की ड्योढ़ी पर
रखा है दिया ,
इस दिवाली का पहला दिया ।
दिया है तो रोशन है हर दिशा ।
दिया है तो दिये तले
अँधेरा भी होगा ही ,
कहीं न कहीं ।
काश कि इन अँधेरे कोनों तक
हर सूने मन और आँगन तक
पहुंचे रोशनी का पैग़ाम ।
दिये जलते रहें
हर घर की दहलीज़ पर ,
आलों में ,
छज्जों पर . .
और सबके ज़हन में
जगमगाते रहें
आकाशदीप ।