हम
यानी जनता जनार्दन .
दिन पर दिन
दर्शक बने
बिना टिकट के
देखते हैं तमाशा
राजनीति का .
राजनीति जो
सत्ता के गलियारों
में घूम-फिर कर
अब सेंध मार कर
घुस बैठी है
घर-घर में ,
और हथिया लिया है
जीवन का हर प्रसंग .
राजनीति जो
भ्रष्टाचार की
माला जपती है .
राजनीति जो
अब कोई नीति नहीं
केवल अनीति है .
और जनता जनार्दन का क्या ?
उसकी भूमिका है क्या ?
उसकी प्रतिक्रिया है क्या ?
उसकी जीवनचर्या है क्या ?
जनता जनार्दन ..
पिले हुए हैं , कोल्हू के बैल की तरह .
पिस रहे हैं , आपाधापी की चक्की में घुन की तरह .
मूक दर्शक हैं ,
चौराहों पर पथराई
महापुरुषों की मूर्तियों की तरह .
क्या कहें ..
कुछ कर नहीं पाते .
रह जाते हैं
पिंजरे में पर फड़फड़ाते, चोंच मारते
पंछी की तरह .
और ईमान की बोली
हर गली में
लग रही है .
बड़ा आदमी बड़ा ,
छोटा आदमी छोटा ,
जिसका हाथ जहाँ तक पहुंचा
अपना हाथ
साफ़ कर रहा है .
ईमानदारी के उसूल
अब कोई नहीं हैं .
हाँ तरीके हैं
बहुत सारे ,
ईमानदारी जताने के ..
काम निकालने के .
इसी व्यावहारिकता के मंच पर
एक आदमी अकेला खड़ा
अपनी बात कह रहा है
मतलब कुछ बक रहा है ,
उसका किस्सा कोई नहीं सुनता .
बड़ी समझदार है ये जनता !
इस आदमी को आप-हम
सब पहचानते हैं .
इस नस्ल के आदमी अब
बहुत कम तादाद में
पाए जाते हैं .
पर कमबख्त !
बाज नहीं आते हैं !
इक्का-दुक्का हर जगह
मिल ही जाते हैं .
इस आदमी की क्या है लाचारी ?
जो पकड़ कर बैठा है ईमानदारी !
सुनिए श्रीमान ! इस आदमी में ही नुक्स है !
जी तोड़ कर जब तक काम न करे
इसे चैन नहीं पड़ता !
हर काम को इस तरह है करता
जैसे जहाँपनाह ! ताजमहल कर रहा हो खड़ा !
इसके साथ एक और बड़ी दिक्कत है !
सीधे , सच्चे , साधारण आदमी का
ये बड़ा हमदर्द है !
उसका बेड़ा पार लगायेगा !
उसके बिगड़े काम बनायेगा !
जब सारे शहर की बत्ती गुल हो
तब इसे देखो !
अपनी मोमबत्ती के उजाले में
चुपचाप अपना काम करता है .
इसी आदमी के चलते
दुनिया का काम चलता है .