शुक्रवार, 15 सितंबर 2023

अपनेपन की भाषा है हिंदी


हिंदी सह्रदय सहचरी ! बहन मुँहबोली !
स्नेह पगी अभिव्यक्ति इसकी रसभरी !
बिना सीखे भी जो बोलनी आ जाती !
बोलते-सुनते ही हिंदी राजभाषा बनी !
वैज्ञानिक लिपि देवनागरी,मानते सभी,
जैसी बोली जाती, वैसी लिखी जाती।
समृद्ध साहित्य की बाँध गठरी चल दी,
अब दुनिया भर में करती चहलकदमी ।
अपनेपन की भाषा ठहरी अपनी हिन्दी 
अपने रास्ते ख़ुद बनाती भाषा एक नदी।


12 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. पढ़ते रहिएगा.

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 17 सितंबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    1. धन्यवाद, यशोदा सखी. किसी कारणवश आपकी टिप्पणी एक-दो बार से ईमेल पर नहीं आ रही. क्या आपको भी ब्लॉग में कोई समस्या नज़र आती है ?

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  3. बहुत सुंदर भाव प्रवण सृजन, हिन्दी को समुच्चय आदर देती कविता।

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    1. कुसुम सखी, नमस्ते. आपकी सराहना सर-आँखों पर. हर वर्ष इस तरह के विषयों पर वही लकीर पीटने के बजाय कुछ अनकहा-सा कहने की कोशिश की.

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  4. उत्तर
    1. हरीश जी, धन्यवाद. आपका नमस्ते पर स्वागत है. पढ़ते रहिएगा.

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  5. नमस्ते आदरणीया बहुत सुंदर रचना,

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