सुबह उठे जब
अपने हाथों को देखा
प्रभाते कर दर्शनम
दिन शुरू हुआ
कमाई करने निकला
खाली हाथ जो था ।
वक्त से दुआ-सलाम हुआ ।
दिल को किसी का पैगाम मिला ।
किसी की नादानी को माफ़ किया ।
किसी का दामन थाम लिया ।
किसी मुस्कुराहट का जवाब दिया ।
कुछ देर ठहर किसी दर पर बातें कीं ।
किसी दरख़्त की छाँव महसूस की ।
रास्ते पार किए बगैर जा पहुँचे कहीं ।
घुमाती ही रहती है जीवन की सप्तपदी ।
दो पैसे कमाए ।
सांझ संग रंगों की चूनर बुनी ।
बाज़ारों की रौनक़ देखी ।
खेलते बच्चों की किलकारियां सुनीं ।
और मंदिर की घंटियों की रागिनी ।
क्यारी में बो दी धूप की संजीवनी ।
सुराही में भर ली पूनम की चाँदनी ।
मिलने वालों से दो बातें की खुशी-खुशी ।
दुख बाँटे ,गले मिले,दिल की बात ज़ाहिर की ।
नेकदिल बंदों की सलामती की दुआ मांगी ।
थक के चकनाचूर हुए पाँव फैलाये
मगर उतने ही जितनी चादर थी ।
तानते ही चादर नींद ने लोरी सुनाई ।
नफ़े-नुकसान की बात यदि रहने ही दें ।
इतने में ही हो जाती है भरपाई ।
दाल भात बाटी, सर पर हो छत अपनी ।
बिछौने पर लेटते ही नींद आ जाए ।
दुख-सुख के आभूषण, बात करने को अपने ।
मन में हो प्रार्थना और दिल में भलाई ।
बहुत है अपने लिए इस दिन की कमाई ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 मई 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-05-2023) को "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दुख-सुख के आभूषण, बात करने को अपने ।
जवाब देंहटाएंमन में हो प्रार्थना और दिल में भलाई ।
बहुत है अपने लिए इस दिन की कमाई ।
...जीवन संदर्भ पर यथार्थपरक रचना।
बहुत शुभकामनाएँ मित्र।