बस यहाँ से
पगडंडी
मुङ जाती है ।
अब यहाँ से
शायद तुम्हें
अकेले ही
आगे जाना पङे ।
क्योंकि
यह पगडंडी
तुम्हारे भीतर
उतरती है,
जहाँ सिर्फ़ तुम
जा सकते हो ।
पर फ़िक्र
किस बात की ?
जहाँ किसी का
नहीँ प्रवेश,
वहाँ भी
केशव तो हैं ही !
जिन्होंने
परीक्षित की
आप ही
रक्षा की,
और अनर्थ
ना होने दिया ।
वे ही तो
बिना कहे
जान लेते हैं
जिय की बात ।
फिर तुम
कहो न कहो
किसी से,
आराध्य को तुम्हारे
सब पता है ।
प्रति पल तुम पर
नज़र है,
वंशी वाले की ।
पुरानी आदत है
नटवर नागर की
नचाने की ,
जब तक नाचना
आ न जाए !
सौगंध है तुम्हें अपने
गिरिवर धारी की !
विपदा से विचलित
भयभीत मत होना !
जब सँभले न नाव
सौंप देना पतवार
खेवनहार के हाथ ।
साहस मत खोना !
लेना शरण चरणों में
सुदर्शन चक्र धारी के !
जाने क्या लीला है
मोरमुकुट वाले की !
अनुभव अनुभूति से जताने की
मथे बिना मिलता नहीं माखन ।
मंथन बिना नहीं मिलता अमृत ।
सुन्दर
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