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शुक्रवार, 8 मई 2020

अंतरंग

ध्वस्त मनःस्थिति
कोई राह सूझती न थी
सन्नाटा पसरा था
बाहर और भीतर
शब्द-शून्य क्षण था
पत्ता भी हिलता न था 
अव्यक्त असह्य पीड़ा का
बादल घुमड़ रहा था ।

इतने में सहसा 
दूर कहीं टिमटिमाया
जुगनू सा
आरती का दिया
और सुनाई दी
घंटी की धीमी ध्वनि ।

भीतर कुछ पिघल गया
एक आंसू ढुलक गया ।
कोई तार जुड़ गया ।
कोई ना था पर लगा
कोई सुन रहा था
समझ रहा था
साथ था सदा।

10 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. धन्यवाद, मीना जी ।
      उम्मीद पे दुनिया क़ायम है ।

      हटाएं
  2. कोई सुन रहा था
    समझ रहा था
    साथ था सदा।

    बिल्कुल सही कोई तो है जो सदा साथ था और है।

    ✅✅👍🏻👍🏻💐💐

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  3. समझने के लिए बेहद शुक्रिया.
    सोच का ही सारा फेर है .

    जवाब देंहटाएं

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