जा रहे हो
तुम अपने रास्ते
किसी काम से ।
तभी देखा
रास्ते के किनारे
कोई बेचारा
चोट खाया
पड़ा हुआ था ।
कोई ना मदद को
आगे आ रहा था ।
दिल बोला
हाथ बढ़ा ।
कर सहायता
अस्पताल पहुँचा ।
दिमाग़ बोला,
क्या फ़ायदा ।
ये ना बचेगा ।
उल्टा तू फँसेगा ।
दिल फिर बोला,
बहाने न बना !
कोशिश तो कर जा
जान बचा !
दिमाग़ फिर अड़ा
कोई न कोई तो
पहुँचा ही देगा ।
तू चल ना !
किसकी सुनोगे भैया ?
कैसे लोगे फ़ैसला ?
सोचने का समय
लिए बिना,
दिल जो पहली दफ़ा
रास्ता बताता है,
सही बताता है ।
रास्ता पार कैसे होगा ?
ये तिकड़म लगाना
दिमाग़ को
बेहतर आता है ।
किसी बात को,
किसी काम को
हाँ कहना है या
ना कहना,
ये फ़ैसला लेना
दिल से ।
पर काम को
कैसे करना है,
ये तय करना
दिमाग़ से ।
दिल की सुनना ।
दिमाग़ से काम लेना ।
बड़े बेहतरीन भाव
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 18 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंअद्भुत कविता! दिल हमेशा दिमाग को जीत लेता है न!
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