शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

पुलक


बीज बोने के
बहुत दिनों बाद तक
सींचते-सींचते
मिट्टी को नरम रखते
आतुर नयन
ढूँढते हैं
जीवन का कोई चिन्ह ।
और तब
जब एक दिन अचानक
नम मिट्टी में
एक अंकुर
फूटते देख
जो पुलक हृदय में
हिलोर लेती है ..
उल्लास का सरोवर
बन जाती है ।
उस सरोवर को कभी
सूखने मत देना ।
उस निर्द्वंद पुलक को
भाव सरोवर में,
अनगिनत कमल बन
खिलने देना ।


10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-07-2019) को "कॉन्वेंट का सच" (चर्चा अंक- 3409)) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. उत्तर
    1. हार्दिक आभार अनुराधा जी ।
      आपने कहा तो मेहंदी की तरह रच गई रचना : )

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  3. A very pleasant poem with the secret of happiness

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