शनिवार, 14 जुलाई 2018

ढीठ

तना झुक गया है,
फिर भी,
तन कर
चुनौती दे रहा है,
आने वाले
समय की
अनिश्चितता को ।

या झुक कर
सलाम कर रहा है,
सर पर तने
नीले आकाश की
असीम संभावनाओं को ।

ये पेड़ ज़िद्दी,
बन कर पहेली,
कब से
खड़ा है
मेरे रास्ते में,
ठेल रहा है मुझे
ठहर कर
सोचने को ।