कविता जब सूझी,
झट लिख दी ।
बौद्धिक श्रृंगार किया नहीं ।
शब्दों को संजोया नहीं ।
बेवजह मंथन किया नहीं ।
चाँद - सितारे जड़े नहीं ।
नाप - तोल के देखा नहीं,
लाग - लपेट में पड़े नहीं ।
बस जैसी मन में उपजी,
वैसी ही अर्पित कर दी।
भावना सच्ची थी।
बस इतनी गुणवत्ता थी।
वर्ना बात ही तो थी ,
कहनी थी कह दी।