बप्पा तुम आ गए ,
कोलाहल हृदय के
हुए शांत ।
क्लांत चेतना ने
पाया विश्राम ।
तुम पिता मेरे
स्वरुप विशाल,
तुम्हारी गोद में
रख कर सिर
सो जाऊँ निश्चिंत ,
निर्द्वंद, निर्भय ।
रख देना वरद हस्त
मेरे शीष पर,
सहला देना
मस्तक मेरा ।
इस अनुभूति के
पश्चात ..
और मुझे चाहिए क्या ?
गणपति बप्पा मोरया !
मंगल मूर्ति मोरया ..
शनिवार, 7 सितंबर 2024
शुभंकर शुभागमन
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दर्शन लाभ सविनय आभार : श्री करन सिंह पति
रविवार, 1 सितंबर 2024
चिट्ठी .. सुधियों की सौगात
चिट्ठी में लिखी बात
सुधियों की सौगात ।
रह-रह कर आती याद
थाम लेती बार-बार ।
बस खोलते ही दराज
उमङते ह्रदय के भाव ।
लिखावट में साकार
अपने आ बैठते पास ।
कुशल-क्षेम के बाद
हिदायतें लगातार..
शब्द-शब्द से छलकता
प्यार भरा सरोकार ।
फिर सिलसिलेवार,
उस पार के समाचार ।
कभी मदद की गुहार ।
याद रखने की फ़रियाद।
लौट आने की मनुहार।
व्याकुल मन की पुकार ।
विचारों का आदान-प्रदान,
अनुभव से अर्जित समाधान ।
चिट्ठी लिखी जाती थी,
मानो बात हो जाती थी ।
दूरियाँ पाट देती थी ।
चिट्ठी वो ऊँची पतंग थी ।
डाक बाबू नहीं,आता था वैद्य
चिट्ठियाँ करती थीं उपचार !
चिट्ठी लिख होता था संवाद ..
चिट्ठी का अब भी रहता है इंतज़ार ।
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