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मंगलवार, 14 मई 2024

सुगंध से जाना

अनायास ही

सुगंध आई,

खिङकी के 

पास से 

गुज़रते हुए ।

भीनी सी

दस्तक देकर

छुप गई..

कुछ देर हुई 

छुपा-छुपी..

फिर सुगंध की

उंगली पकङ ली,

बाहर झुक कर

देखा जो अभी

खिल गई थी

मोगरे की कली,

रात में ही

मानो चाँदनी । 

ख़बर दे रही थी,

अपना परिचय

भेज कर ।

जैसे आदमी की

शख‍्सियत 

सूरत नहीं,

तय करती है सीरत,

ठीक ऐसे ही

सिर्फ़ रुप से नहीं,

फूल की पहचान 

होती है उसकी

सुगंध से ही ।